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अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013
रानियों की प्रव्रज्या : श्रीकृष्ण की रानियां पद्मावती, गौरी, गान्धारी, लक्षणा, सुसीमा, जम्बूवती, सत्यभामा, रूक्मिणी, मूलश्री और मूलदत्ता ने भगवान् अरिष्टनेमि द्वारा साध्वीप्रमुखा आर्या यक्षिणी के माध्यम से मुंडित होकर प्रव्रजित हुई तथा अन्त में निर्वाण प्राप्त किया। (५/१-४३)
अर्हत् अरिष्टनेमि : ऐतिहासिक प्रमाणों के परिप्रेक्ष्य में : भगवान् अरिष्टनेमि के जीवन-वृत्त को हमने जैन साहित्य के आधार पर देखा। उत्तराध्ययन ज्ञाताधर्म-कथा आदि के प्रमाण अपने आप में उतने ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक साक्ष्य है, जितने अन्य वाड्.मय के। जैन आगमों के इन विवरणों की ऐतिहासिकता के संदेह से परे होने पर भी हम वैदिक एवं बौद्ध साहित्य के आधार पर तथा पुरातत्त्वीय उल्लेखों के आधार पर भी बाईसवें तीर्थकर श्री अरिष्टनेमि, उनके और श्रीकृष्ण वासुदेव के सम्बन्ध आदिके विषय में कुछ और ठोस साक्ष्यों की चर्चा करने जा रहे हैं।
वैदिक काल के अंतिम भाग में ही पशुबलि के विरोध में एक लहर चल पड़ी थी। मगधनरेश वसु विद्योपरिचर के समय में पर्वत-नारद उसी प्रश्न को लेकर हुआ था। इस घटना के विषय में जैन एवं ब्राह्मण दोनों अनुश्रुतियाँ एकमत हैं। अपने बन्धु तीर्थकर अरिष्टनेमि के विचारों से प्रभावित कृष्ण वासुदेव और उसके भाई बलराम भक्तिप्रधान अहिंसाधर्म की इस लहर के अनयायी एवं सबल पोषक थे।
महाभारत के उपरान्त काल में कुछ वैदिक ब्राह्मणों को छोड़कर शेष बहुभाग समाज इसी लहर का अनुयायी होता चला गया। उसके नेता प्रमुखतः क्षत्रिय लोग थे।
वेदों का अस्तित्व पांच हजार वर्ष प्राचीन माना जाता है। उपलब्ध साहित्य श्रीकृष्ण के युग का उत्तरवर्ती है। इस साहित्यिक उपलब्धि द्वारा कृष्ण-युग तक का एक रेखाचित्र खींचा जा सकता है। उससे पूर्व की स्थिति सुदूर अतीत में चली जाती है। वेदों में एक ऋचा है जिसमें 'अरिष्टनेमि' का नाम मिलता है -
इसमें आये हुए अरिष्टनेमि अर्हत् अरिष्टनेमि ही हैं या कोई अन्य, यह अभी खोज का विषय है, पर कुछ विद्वान् मानते हैं कि ये उल्लेख अर्हत् अरिष्टनेमि विषयक हैं। ___ डॉ. राधाकृष्णन् लिखते हैं - ‘यजुर्वेद में ऋषभदेव, अजितनाथ तथा अरिष्टनेमि इन तीन तीर्थकरों का उल्लेख पाया जाता है।१६ ___ जैन आगमों के अनुसार श्रीकृष्ण के आध्यात्मिक गुरु तीर्थकर अरिष्टनेमि थे। घोर
आंगिरस ने श्रीकृष्ण को जो उपदेश दिया है, वह जैन परम्परा से भिन्न नहीं है। 'तू अक्षित अक्षय है, अच्युत-अविनाशी है और प्राण-संशित-अतिसूक्ष्मप्राण है।' इस त्रयी को सुनकर श्रीकृष्ण अन्य विद्याओं के प्रति तृष्णाहीन हो गए। जैन दर्शन आत्मवाद की भित्ति पर अवस्थित है। घोर आंगिरस ने जो उपदेश दिया, उसका सम्बन्ध आत्मवादी धारणा से है। 'स्थितभाषिय' में आंगिरस नाम प्रत्येक-बुद्ध का उल्लेख है। वे भगवान् अरिष्टनेमि के