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अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013 जब बाईसवें तीर्थकर अरिष्टनेमि अपने अंतिम समय में सुराष्ट्र (सौराष्ट्र) जनपद में विहरण कर रहे थे, तब पांचों पाण्डव मुनियों ने भगवान् के दर्शन करने सुराष्ट्र-जनपद की
ओर विहार किया। मार्ग में हस्तकल्प नगर में उन्हें यह संवाद प्राप्त हुआ कि अरिष्टेनमि भगवान् उज्जयंत पर्वत पर एक मास का अनशन पूर्णकर निर्वाण को प्राप्त हो गए हैं, तब वे भी शत्रुजय पर्वत पर आरोहण कर अनशन स्वीकार कर लेते हैं। दो मास का अनशन पूर्णकर अन्त में केवलज्ञान उपार्जन कर निर्वाण प्राप्त करते हैं। द्रौपदी आर्या भी बहुत वर्षों तक श्रामण्य- पर्याय की आराधना कर, अन्त में एक मास का अनशन का कालधर्म को प्राप्त होने पर पाँचवें दवलोक में देव के रूप में उत्पन्न होती है। वहाँ से उसका जीव आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर निर्वाण प्राप्त करेगा।
राजीमति : भोजराज उग्रसेन की पुत्री राजीमति जिसके साथ अरिष्टनेमि का पाणिग्रहण होने वाला था। अरिष्टनेमि के द्वारा छोड़ दिये जाने पर जो दुःखी थी उसे अरिष्टनेमि के एक अनुज था। रथनेमि जो राजीमति के प्रति आसक्त होकर उससे मिलता है और विवाह का प्रस्ताव रखता है। पर राजीमति स्वयं विषयभोगों से विरक्त हो चुकी थी। उसने रथनेमि को भी समझा दिया।
थावच्चापुत्र : द्वारिका की प्रसिद्ध श्राविका थावच्चा का पुत्र अपनी माँ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। माता के द्वारा संसार के स्वरूप की जानकारी प्राप्त कर थावच्चापुत्र उत्सुकता से अरिष्टनेमि के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा। कुछ समय बाद उनका आगमन हुआ। वह अपनी मां के साथ भगवान् के समवसरण में
गया। उनका प्रवचन सुना। प्रतिबुद्ध हुआ और माँ की आज्ञा लेकर भगवान् के पास दीक्षित हो गया। उन्होंने ३२ पत्नियों को त्याग कर हजार पुरुषों के साथ प्रव्रज्या ली। उनकी प्रव्रज्या रैवतक पर्वत के नन्दनवन में हुई। उस समय अरिष्टनेमि इस वन के सुरप्रिय यक्ष के यक्षातयन में विरजते रहे थे। थावच्चापुत्र के साथ प्रव्रजित सहस्र पुरुषों को, उन्हें ही शिष्य के रूप में सौंप दिया था।
गौतम आदि दस अन्धक-वृष्णि-धारिणी के पुत्र : अन्तगड़दसाओं प्रथम वर्ग में बताया गया है कि द्वारवती के राजा अन्धक-वृष्णि की धारिणी रानी से उत्पन्न गौतम, समुद्र, सागर, गंभीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेन और विष्णु- इन दस राजकुमारों ने भगवान् अरिष्टनेमि के पास प्रव्रज्या ग्रहण कर, ग्यारह अंगो का अध्ययन कर, बारह भिक्षु-प्रतिमाओं (विशेष तपःसाधना) को पूर्ण कर, गुणरत्न तप कर अंत में शत्रुजय पर्वत पर एक मास की संलेखना कर, बारह वर्ष चारित्र-पर्याय का पालन कर सिद्ध हुए।
अक्षोभ आदि आठ अन्धक वृष्णि धारिणी के पुत्र : इनका भी वर्णन अंतगडदसाओ, द्वितीय वर्ग में है, जो पूर्ववत् हैं केवल इतना अन्तर है कि इनकीदीक्षा पर्याय सोलह वर्ष बताई गई। इन आठ में कुछ नाम तो वे ही हैं, जो अंतगडदसाओं, प्रथमवर्ग में बताए गए हैं, कुछ नाम भिन्न हैं।