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अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013 के उपदेश में मोक्ष साध्य माना गया है, अतः इस उपदेश का सम्बन्ध जैनधर्म के बाईसवे तीर्थकर अरिष्टनेमि से ही होना चाहिए। उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावक था कि 'लंकावतार' में बुद्ध को भी अरिष्टनेमि कहकर उल्लिखित किया गया है। इसका मूल कारण उनकी अहिंसात्मक साधना है। इतिहास की दृष्टि से वे यदुवंशी कृष्ण के चचेरे भाई थे। इन उद्धरणों से अरिष्टनेमि का व्यक्तित्व ऐतिहासिक माना जाने लगा है।३। बाइसवें तीर्थकर अरिष्टनेमि : परम्परागत इतिहास - ___भगवान् अरिष्टनेमि उस युग के तीर्थकर हैं जिस समय श्रीकृष्ण वासुदेव इस भारत भूमि में विद्यमान थे। अरिष्टनेमि का अपर नाम 'नेमिनाथ' भी है।
अर्हत् अरिष्टनेमि ३०० वर्ष पर्यन्त कुमार-वास में रहे। ५४ रात्रि दिवस छद्मस्थ अवस्था में रहे। ७०० वर्ष से कुछ कम वे अर्हत् अवस्था में रहे। इस प्रकार १००० वर्षों का आयुष्य पूर्ण होने पर वे परिनिर्वाण को प्राप्त हुए।
जीवन के अन्तिम समय में भगवान् अरिष्टनेमि ने उज्जयंत गिरि पर ५३६ साधुओं के साथ अनशन कर लिया। भगवान् ने २० दिनों के अनशन में आषाढ़ शुक्ला अष्टमी की मध्य रात्रि चित्रा नक्षत्र के योग में शेष चार अघाती कर्मो का नाश कर निर्वाण-पद प्राप्त कर लिया। वे सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गए। देवों एवं मनुष्यों ने उनका निहरण समारोह किया। जैन परम्परा के अनुसार उनके निर्वाण के ८४९८० वर्ष पश्चात् कल्पसूत्र की रचना हुई।१४
अर्हत् अरिष्टनेमि के युग में तात्कालिक अनेक नरेशों एवं राजकुमारों ने भगवान् के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। उनमें कुछ उल्लेखनीय व्यक्ति हैं -
निषधकुमार : ये राजा बलदेव के पुत्र थे। इनकी माता का नाम रेवती था। बलदेव श्रीकृष्ण के सौतेले अग्रज थे। वे वसुदेव की दूसरी रानी रोहिणी के पुत्र थे। जैन परंपरा में वासुदेव के बड़े भाई बलदेव या राम कहलाते हैं। इनकी गणना तिरसठ शलाका, पुरुषों में की जाती है। (२४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ९ बलदेव, ९ प्रतिवासुदेव - इस प्रकार ६३ व्यक्ति प्रत्येक काल-चक्रार्ध में भरतक्षेत्र और ऐरावत् क्षेत्र पैदा होते हैं।)
निरयावलिया : के पंचम वर्ग वण्हिदसाओ (बारहवें उपांग) में निषध द्वारा भगवान् अरिष्टनेमि के द्वारा चारित्र-ग्रहण तथा अन्त में अनशन के आराधन द्वारा सर्वार्थसिद्ध नामक सर्वोत्कृष्ट अनुत्तर विमान में देव-रूप उत्पत्ति और अगले भव में मोक्ष प्राप्त करने का वर्णन दिया गया है।
पांच पांडव और द्रौपदी : इतिहास-प्रसिद्ध महाभारत के योद्धा पांचों पाण्डवों एवं द्रौपदी का विस्तृत आख्यान नायाधम्मकहाओ, (ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र) के १६वें अध्ययन में उपलब्ध है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण है। अन्त में पांच पाण्डवों स्थविरों के पास प्रव्रज्या-ग्रहण करते हैं। पांच पांडव चतुर्दशपूर्वो का अध्ययन करते हैं तथा अनेक वर्षों तक नानाविध तपस्या करते हैं। द्रौपदी आर्या सुव्रता के पास दीक्षित होकर ग्यारह अंगों का अध्ययन करती है तथा अनेक वर्षों तक नानाविध तपस्या करती हैं।