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________________ अनेकान्त 66/3, जुलाई - सितम्बर 2013 शासनकाल में आए थे। इस आधार पर यह संभावना की जा सकती है कि घोर आंगिरस या तो अरिष्टनेमि के शिष्य या उनके विचारों से प्रभावित कोई संयासी रहे होंगे। 84 ऋग्वेद मं ‘अरिष्टनेमि' शब्द चार बार आया है । 'स्वस्ति नस्ताक्ष्यों अरिष्टनेमिः' (ऋग्वेद, १/१४!८९१६) में अरिष्टनेमि शब्द भगवान् अरिष्टनेमि का वाचक होना चाहिए। महाभारत में ‘तार्क्ष्य’ शब्द अरिष्टनेमि के पर्यायवाची नाम के रूप में प्रयुक्त हुआ है। तार्क्ष्य रिष्टनेमि ने राजा सगर को जो मोक्ष विषयक उपदेश दिया उसकी तुलना जैन-धर्म के मोक्ष संबन्धी सिद्धान्तों से होती है। वह उपदेश इस प्रकार है : “सगर ! संसार मोक्ष का सुख ही वास्तविक सुख है, परन्तु जो धन-धान्य के उपार्जन में व्यग्र तथा पुत्र और पशुओं में आसक्त है, उस मूढ़ मनुष्य को उसका यथार्थ ज्ञान नहीं होता। जिसकी बुद्धि विषयों में आसक्त है, जिसका मन अशान्त बंधन में बंधा हुआ है, वह मूढ मोक्ष पाने के लिए योग्य नहीं होता। इस समूचे अध्याय में संसार की असारता, मोक्ष की महत्ता, उसके लिए प्रयत्नशील होने और मुक्त के स्वरूप का निरूपण है । सगर के काल में वैदिक लोग मोक्ष में विश्वास नहीं करते थे, इसलिए यह उपदेश किसी वैदिक ऋषि का नहीं हो सकता। यहाँ 'ताक्ष्य' अरिष्टनेमि’ का प्रयोग भगवान् अरिष्टनेमि के लिए ही होना चाहिए। प्रभासपुराण में अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण का संबन्धित उल्लेख है । अरिष्टनेमि का रेवत (गिरनार) पर्वत से भी सम्बन्ध बताया गया है और वहाँ बताया गया है कि वामन ने नेमिनाथ को शिव के नाम से पुकारा था । वामन ने गिरनार पर बलि को बाँधने का सामर्थ पाने के लिए भगवान् नेमिनाथ के आगे तप किया था। इन उद्धरणों से श्रीकृष्ण और अरिष्टनेमि के परिवारिक तथा धार्मिक संबन्ध की पुष्टि होती है। उत्तराध्ययन कमे बाईसवें अध्ययन से भी यही प्रमाणित होता है। प्रोफेसर प्राणनाथ ने प्रभास पाटण से प्राप्त ताम्रपत्र को इस प्रकार पढ़ा है - रेवा खण्ड : प्रकरण : नगर के राज्य के स्वामि सु - जाति के देव नेवुशर नेजर आए है। वह वदुराज के स्थान (द्वारिका) आए हैं। उन्होंने मंदिर बनवाया है। सूर्य - देवनेमि कि जो स्वर्ग समान रेवत पर्वत के देव हैं (उन्हें ) सदैव के लिए अर्पण किया। बावल के सम्राटों में नेवुशर और नेजर नामक दो सम्राट् हुए हैं। पहले का समय ई. सन् से लगभग दो हजार वर्ष पहले है और दूसरे ई. सन् पूर्व छठीं या ७ शती में हुए हैं। इन दोनों में से एक ने द्वारिका आकर रेवत (गिरनार) पर्वत पर भगवान् नेमिनाथ का मंदिर बनवाया था। इस प्रकार साहित्य व ताम्र पत्र - त्र - लेख दोनों से अरिष्टनेमि का अस्तित्व प्रमाणित होता है। संदर्भ : १. ऋग्वेद १०, १७८.९ २. ऋग्वेद १.८०.१०
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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