SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 79 अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013 यहाँ इस प्रकार का पुरातत्त्व भी मिला है। यहाँ नेमि को 'जिन' संज्ञा दी गयी है और उनके तपस्या-निर्वाण स्थान को मुक्ति का कारण कहा गया है। इसके अतिरिक्त कतिपय पुरातात्त्विक प्रमाण भी तीर्थकर नेमिनाथ की ऐतिहासिकता सिद्ध करते हैं। उदाहरणतः बेवीलोन सम्राट नेवुचन्द नेजर दान पत्र भी इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है। यह दानपत्र ;प्ससनेजतंजमक ममासल व िप्दकपंद्ध के १४ अप्रैल १९३३ के पृष्ठ ३१ पर डॉ. प्राणनाथ - प्रो. हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस का अर्थ सहित प्रकाशित हुआ था। उनके अध्ययन के अनुसार इस दानपत्र का अर्थ निम्न प्रकार है - ___ रीवापुरि (जूनागढ़) में राज्य देवता-सूसा का प्रधान देवता नेबुचन्द नेजर आया', उसने यदुराज के स्थान में मठ (मन्दिर) बनवाया, हमारे ईश्वर (अधिपति) नागेन्द्र ने आने वाली नावों की आय को दान के रूप में (भेंट में) दिया रैवतक (पर्वत) के ओम् (भगवान) सूर्यदेवता नेमि के लिये। इस दानपत्र में भली भाँति सिद्ध है कि न केवल भारतीय जनता बल्कि दूर पश्चिमी एशियाई देशों के लोग भी भगवान् नेमिनाथ के उपासक थे। तीर्थङ्कर महावीर के भक्तों में अनार्यभूमि के राजकुमार आर्द्र का उल्लेख आता है। यह आर्द्रदेश कौन होना चाहिए यह विचारणीय है। मेसोपोटेमिया का उत्तरभाग एरिया के नाम से जाना जाता है जो असुर का विकृत रूप है। मध्यभाग की राजधानी बेबीलोन (ई.पू. २१२३ से २०२१) थी और समुद्र तटवर्ती दक्षिण भाग की प्राचीन राजधानी ऐद्य बंदरगाह थी। बाद में तीनों भागों की राजधानी बेबीलोन को बना दिया गया। यहां ऐर्य नगर ही आर्द्र नगर होना चाहिए। ई.पू. ५००० वर्ष से यह बन्दरगाह का भारत के साथ सीधा जल मार्ग का सम्बन्ध था। आज यह बंदरगाह भर गया। इसके अखण्डर बतरा (इराक) के पास उर से १८ किमी. में फैले हुए हैं। नेबूचन्द्र नेजर यहीं का अधिपति था। भगवान् अरिष्टनेमि का नाम अहिंसा की अखण्ड ज्योति जगाने के कारण इतना अत्यधिक लोकप्रिय हुआ कि महात्मा बुद्ध के नामों की सूची में एक नाम अरिष्टनेमि का भी है। लंकावतार के तृतीय परिवर्तन में बुद्ध के अनेक नाम दिये हैं। वहाँ लिखा है - जिस प्रकार एक ही वस्तु के अनेक नाम प्रयुक्त होते हैं उसी प्रकार बुद्ध के असंख्य नाम हैं। कोई उन्हें तथागत कहते हैं तो कोई उन्हें स्वयंभू, नायक, विनायक, परिणायक, बुद्ध, ऋषि, वृषभ, ब्राह्मण, विष्णु, ईश्वर, प्रधान, कपिल, भूतानृत, भास्कर, अरिष्टनेमि, राम, व्यास, शुक, इन्द्र, बलि, वरूण आदि नामों से पुकारते हैं। नन्दीसूत्र में ऋषिभाषित (इसिभासियं) का उल्लेख है। उनमें पैंतालीस प्रत्येक बुद्धों के द्वारा निरूपित पैंतालीस अध्ययन हैं। उनमें बीस प्रत्येक बुद्ध भगवान् अरिष्टनेमि के समय हुए। उनके नाम इस प्रकार है - १. नारद, २. वज्जिपुत्र, ३. असितदविक, ४. भारद्वाजआंगिरस, ५. पुष्पसाल पुत्र, ६. वल्कलचोरि, ७. कुर्मपुत्र, ८. केतलीपुत्र, ९. महाकश्यप, १०. तेतलीपुत्र,
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy