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अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013
करोड़ों यज्ञों से उत्पन्न फल को देने वाले थे इसलिए वामन ने उनका नाम शिव-कल्याणदाता रख दिया।
रैवतादौ जिनो नेमिः युगादिविमलाचले।
ऋषीणामाश्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणम्॥ अर्थात् जिन भगवान नेमिनाथ ने युग के आदि से (?) पवित्र रैवतक पर्वत पर तपस्या की अतएव ऋषियों का आश्रय होने के कारण ही वह (रैवतक पर्वत) मुक्ति का कारण बन गया।
स्कन्धपुराण में शिव शिष्य के वामन ने तपस्वी का नाम नेमिनाथ रखा जो सर्वपापप्रणाशक है- प्रभास पुराण में भी अरिष्टनेमि की स्तुति की गई है
भवस्य पश्चिमे भागे वामनेन तपः कृतम्। तेनैव तपसाकृठ्ठटः शिवः प्रत्यक्षतां गतः॥ पद्मासनः समासीनः श्याममूर्तिः दिगम्बरः। नेमिनाथः शिवोऽथैवं नाम चकेऽस्यवामनः॥ कलिकाले महाघोरे सर्वपापप्रणाशकः। दर्शनात् स्पर्शनादेव कोटियज्ञफलप्रदः।।४ कैलाशे विमले रम्ये वृषभोऽयं जिनेश्वरः। चकार स्वावतारं च सर्वज्ञः सर्वगः शिवः। रैवतादौ जिनो नेमियुगादि विमलाचले।
ऋषीणां या श्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणम्॥ महाभारत अनुशासन पर्व, अध्याय १४९ में विष्णुसहस्त्रनाम में दो स्थानों पर 'शूरः शौरिर्जिनेश्वरः' पद व्यवहृत हुआ है। जैसे -
अशोकस्तारणस्ताराः शूरः शौरिर्जिनेश्वरः। अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षणः॥५०॥ कालनेमिमहावीरः शौरिः शूरजनेश्वरः।
त्रिलोकात्मा त्रिलोकेशः केशवः केशिहा हरिः॥९२ इन श्लोकों में 'शूरः शौरिर्जनेश्वरः' शब्दों के स्थान में 'शूरः शौरिर्जिनेश्वरः' पाठ मानकर अरिष्टनेमि अर्थ किया गया है। ___ यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि श्रीकृष्ण के लिए 'शौरि' शब्द का प्रयोग हुआ है। वर्तमान में आगरा जिले के बटेश्वर के सन्निकट शौरिकपुर नामक स्थान है। वही प्राचीन युग में यादवो की राजधानी थी। जरासंध के भय से यादव वहाँ से भागकर द्वारिका में जा बसे। शौरिपुर में ही भगवान् अरिष्टनेमि का जन्म हुआ था, एतदर्थ उन्हें “शौरि" भी कहा गया है।