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________________ 44 अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013 जिसमें सम्पूर्ण गुण विद्यमान है, जो शरीर का कांपना, उच्छवास लेना, नेत्रों का खोलना, आदि क्रियाओं का त्याग कर रहा है और जिसका चित्त लोक के ऊपर विराजमान सिद्धों में लगा हुआ है, ऐसे समाधिमरण करने वाले का शरीर परित्याग करना साधकपना कहलाता है। मोक्षमार्ग में सम्यक् चारित्र की भी अनिवार्यता : सम्यग्दर्शन धर्म का मूल अवश्य है पर मात्र सम्यग्दर्शन से मोक्ष- रूप फल की प्राप्ति नहीं हो सकती। मोक्ष प्राप्ति के लिए तो सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान से समन्वित सम्यक्चारित्र की आवश्यकता है। इसीलिए आ. उमास्वामी ने 'सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः (मोक्षशास्त्र १.१) - सूत्र द्वारा सम्यग्दर्शन आदि रत्नत्रय की पूर्णता को ही ‘मोक्ष-मार्ग' कहा है। आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्म और परिग्रह इन पाँच पापों का सकलदेश परित्याग करना ‘सकल चारित्र' है, और एकदेश त्याग करना ‘विकल चारित्र; है। सकल चारित्र मुनियों के होता है और विकल चारित्र गृहस्थों के। सकल चारित्र में पाँच महाव्रत, पांच समिति, और तीन गुप्तियों की प्रधानता है, विकल चारित्र में - पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतों का वैभव है। बारह व्रतों में पांच अणुव्रतों के संबन्ध में कहीं भी मतभेद नहीं है। उनके नाम- भेद अवश्य मिलते हैं। जैसे आ. कुन्दकुन्द ने अपने ‘चारित्र प्राभृत' में पाँचवे अणुव्रत का नाम परिग्रहारम्भ परिमाण और चौथे अणुव्रत का नाम ‘पर पिम्म परिहार जिसका अर्थ परस्त्रीत्याग है तथा प्रथम अणुव्रत का नाम 'स्थूल त्रस काय वध परिहार' रखा है। आ. समन्तभद्र ने 'रत्नकरण्ड' में चौथे अणुव्रत का नाम 'परदारनिवृत्ति' और 'स्वदारसंतोष' रखा है एवं पांचवें अणुव्रत का नाम ‘परिग्रह परिमाण' के साथ ‘इच्छा परिमाण' भी रखा है। कुछ अन्य आचार्यों के ग्रन्थों में भी इन अणुव्रत के कुछ अन्य नाम प्राप्त होते हैं। श्रावकाचार वर्तमान परिप्रेक्ष्य में : समाज, राष्ट्र एवं विश्व में श्रावकाचार' की गुणवत्ता विशिष्ट रूप से सर्वमान्य है। किन्तु आज समय बदल गया है। मानव में सात्विक मनोवृत्ति में हीनता आयी है, मलीनता वायु की तरह प्रायः सर्वत्र परिव्याप्त हो रही है, ऐसी स्थिति में श्रावकाचार के सिद्धान्तों की महत्ता विशिष्ट रूप से प्रतिभासित हो रही है। मनुष्य भव प्राप्त होने के बाद मनुष्यत्व, शास्त्र श्रवण, श्रद्धा और संयम। ये चार साधन जीव को प्राप्त होने अत्यन्त कठिन हैं। इन चारों में मनुष्यत्व सबसे पहला है। मनुष्य शरीर पाने के बाद भी यदि मनुष्यता न प्राप्त की गयी, तो मनुष्य जन्म बेकार है। शिक्षा के क्षेत्र में परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर वकील, डॉक्टर, इंजीनियर आदि अनेक डिग्रियाँ प्राप्त करते हैं, लेकिन मनुष्यत्व की परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले कितने होते हैं? मनुष्यत्व की सच्ची
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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