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________________ अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013 शिक्षा देने वाले - स्कूल, कॉलेज, विद्या मंदिर तथा पाठ्य पुस्तकें आज कहाँ हैं? श्रावकाचार मनुष्यता की शिक्षा देने वाला मुक्त विश्वविद्यालय व्चमद न्दपअमतेपजलद्ध है। जैन परिभाषा में आचरण को ‘चारित्र' कहते हैं। चारित्र का अर्थ है- संयम पालन, भोग विलास से उदासीनता, अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्ति और शुभ प्रवृत्ति की स्वीकृति। आज की प्रमुख समस्याएँ : - तनाव, अतृप्ति, अशान्ति, चरित्रहीनता और सुविधावाद है। ये समस्याएँ पहले राई जितनी लघुकाय थीं, किन्तु आज सुरसा के मुख के समान विकराल हो गयी हैं, ऐसे विकट मोड़ में श्रावकाचार के सिद्धान्त समस्याओं के घाव को भरने वाला समाधान रूपी मलहम हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में 'श्रावकाचार' निर्देशित करता है: १. विश्व हिंसा परायण है, अतः ‘अहिंसा' चाहिए। २. पदार्थ का आकर्षण बढ़ा है, अतः ‘सत्यदृष्टि' चाहिए। ३. विश्व अशान्त है, अतः 'संयम' चाहिए। ४. वासनाएँ बढ़ रही हैं, अतः ‘ब्रह्मचर्य' चाहिए। ५. विश्व अतृप्त है, अतः ‘अपरिग्रह' चाहिए। ६. तनाव बढ़ रहे हैं, अतः ‘धर्मध्यान/सामायिक' चाहिए। श्रावकाचार के अन्तर्गत सबसे पहली आधार भूमि “अहिंसा" है। यदि मात्र इसे अपना लिया जावे तो श्रावकाचार के अन्य अंग स्वयमेव श्रावक से जुटने को उतावले दिखायी देंगे। आज विश्व विनाश के कगार पर खड़ा है। चारों ओर हिंसा का बोलबाला है। एक देश अन्तरंग में एक दूसरे से भयभीत हैं। इस भय को दूर करने के लिए श्रावकाचार' ने अहिंसा का सिद्धान्त विश्लेषित किया है। जैसे खून से सना वस्त्र खून से धोने पर कभी साफ नहीं होता, इसी प्रकार हिंसा करने से कभी भी हिंसा नहीं मिटती। अतः हिंसा को रोकने के लिए 'श्रावकाचार-सम्मत अहिंसाणुव्रत को अपनाना होगा। 'श्रावकाचार' में समाविष्ट अन्य व्रत स्वयमेव अहिंसा की परिधि में आ जाते हैं, क्योंकि जो अहिंसक होते हैं,वे ही शुद्ध सत्य के मर्म को समझते हैं। मृदु सत्य उनके जीवन में दूध में मक्खन की तरह समाया रहता है। जो अहिंसक होते हैं, वे ही अचौर्य व्रत के धारक होते हैं। अब्रह्मचर्य' लाखों जीवों की हिंसा का परिणाम है, ब्रह्मचर्य अहिंसक आराधना है। ‘परिग्रह' तो हिंसा के बिना संभव ही नहीं है, ‘परिग्रह' एक ऐसा पाप है, जिसमें समस्त पाप आकर समाते हैं। इसका निष्कर्ष यही है कि श्रावकाचार में वर्णित एक मात्र अहिंसा सिद्धान्त को ही यदि हम अपना लेवें तो अन्य व्रत स्वयमेव श्रावक के आचरण से जुड़ जावेंगे। 'श्रावकाचार' व्यक्ति में विवेक और सहिष्णुता, संयम और स्वावलंबन, सदाचार और उदारतापूर्ण जीवन शैली पल्लवित, पुष्पित और समृद्ध करता है। हमें जल, अग्नि और वनस्पतियों का असीमित उपभोग करने से बचना
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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