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________________ अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013 पुनर्जन्म सिद्धान्त की सिद्धि भारतीय मनीषियों ने अनेक युक्तियो एवं प्रमाण द्वारा पुनर्जन्म सिद्धान्त को सिद्ध किया है (३६) १. नवजात शिशु में हर्ष, भय, शोक, माँ का स्तनपान आदि क्रियाओं से पुनर्जन्म सिद्धांत की पुष्टि होती है। क्योंकि उसने इस जन्म में हर्षादि का अनुभव नहीं किया है, जब कि ये सब कियाएं पूर्वाभ्यास से ही सम्भव हैं। अनन्त वीर्य ने सिद्ध विनिश्चय टीका में इसी तर्क से पुनर्जन्म सिद्धांत की सिद्धि की है । जिस प्रकार एक युवक का शरीर शिशु की उत्तरवर्ती अवस्था है, इसी प्रकार शिशु का शरीर पूर्व जन्म के पश्चात् होने वाली अवस्था है। यदि ऐसा न माना जाय तो पूर्व जन्म में भोगे हुए तथा अनुभव किये हुए का स्मरण न होने से तत्काल प्राणियों में उपर्युक्त भयादि प्रवृत्तियाँ कभी नहीं होगी लेकिन उनमें उपर्युक्त प्रवृत्तियां होती हैं। अतः पुनर्जन्म की सत्ता स्वीकार्य योग्य है। 37 २. प्रायः सभी प्राणियों में सांसारिक विषयों के प्रति राग द्वेषात्मक प्रवृत्ति का होना भी पुनर्जन्म को सिद्ध करता है। न्यायदर्शन-वात्स्यायन भाष्य में इसका विस्तृत विवेचन किया है। ३. संसार के सभी प्राणी एक समान नहीं होते है । कोई जन्म से अन्धा, बहरा, लूला होते हैं तो कोई बहुत सुन्दर रुपवान होते हैं, आदि । इस प्रकार जीवों में व्याप्त विषमता किसी अदृश्य कारण की ओर संकेत करती है। यह अदृश्य कारण पूर्वजन्म में किये गये कर्मों का फल है; जिसे भोगने के लिए दूसरा जन्म लेना पड़ता है। अतः जीवों के जीवन स्तर से भी पुनर्जन्म की सिद्धि होती है। ४. कुछ व्यक्ति अलौकिक प्रतिभा वाले होते है और कुछ अज्ञानी होते हैं। इसका कारण यही है कि जिस जीव ने जिस कार्य का पहले के जन्म में अभ्यास किया होता है, वह उसमें प्रवीण हो जाता है और अनभ्यस्त आत्मा मूढ़ होती है। जन्म जात विलक्षण प्रतिभा के आधार पर भी पुनर्जन्म की सिद्धि होती है। प्रत्यक्ष और स्मरण के योग - रुप ज्ञान - प्रत्यभिज्ञान के आधार पर भी पुनर्जन्म की सिद्धि होती है। जैन शास्त्रों में देवों के वर्णन के अन्तरगत देवों में एक व्यंतर देवों का भी वर्गीकरण किया गया है। यक्ष, राक्षस, भूतादि व्यंतर देव प्रायः यह कहते हुए सुने जाते हैं कि मै वही हूँ जो पहले अमुक था । यदि आत्मा का पुनर्जन्म न माना जाय तो भूत, प्रेत को इस प्रकार का प्रत्यभिज्ञान नहीं होना चाहिए। अतः व्यंतरों का प्रत्यभिज्ञान पुनर्जन्म को सिद्ध करता है। ६. पूर्वभव का स्मरण पुनर्जन्म को सिद्ध करने वाला ज्वलन्त प्रमाण है। नारकी जीवों के दुःखों का वर्णन करते हुए पूज्यपाद ने कहा है कि "पूर्वभव के स्मरण होने से उनका बैर दृढ़तर हो जाता है, जिससे वे कुत्ते - गिद्ध की तरह एक दूसरे का घात करने लगते हैं। योगसूत्र के कथन से भी सिद्ध है कि आत्मा का पुनर्जन्म होता है। यदि
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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