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________________ अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013 मंदिरों मं ऋषभदेव की माता मरुदेवी के बिम्ब भी विराजमान हैं। इन मंदिरों में रत्नों और पुष्पों के बरसने के चिन्ह छतों में अंकित हैं। तिब्बत के ही एरूल नगर में जैनी राजा राज्य करता है। इस नगर में मावरे जाति के जैन निवास करते हैं। यहां एक नदी के किनारे २०,००० जैन मंदिर हैं और जेठ वदी तेरस, चउदस को दूर-दूर के जैन यात्री वन्दना करने आया करते हैं। नदी के किनारे ही संगमरमर पत्थर का १५० गज ऊँचा सुन्दर मेरुपर्वत भी बना हुआ है। जिनाभिषेक, मेला-समारोह आदि के कारण यहाँ हर्ष का वातावरण सदैव बना रहता है। तिब्बत के अन्य नगर में सोहना जाति के जैनी निवास करते हैं। यहाँ के जैनी तीर्थकरों की राज्य-विभूति को वन्दन-नमस्कार करते हैं। मूर्तियों के सिर पर मुकुट बंधे हुए हैं। तिब्बत की दक्षिण दिशा में ८० कोश की दूरी पर सुन्दर वनों एवं सरोवरों से समृद्ध नगर में ब्रह्मचारी लामचीदास लगातार एक वर्ष तक रहा। यहाँ के जैनी जैन पंथी हैं। ये लोग तीर्थकर के दीक्षा कल्याणक के पूजक हैं। यहाँ पर उनके १०४ शिखर बन्द सुन्दर रत्न जटित मन्दिर हैं। यहाँ वनों मं भी तीस हजार जैन मंदिर हैं इनमें नन्दीश्वर-द्वीप की आकृति के बावन (५२) चैत्यालय भी निर्मित हैं। इन्हीं कारणों से उसे वनस्थली भी कहा जाता है। ब्रह्मचारी लामचीदास ने वहाँ के जैनागमों का श्रवण कर तथा प्रभावित होकर ग्यारह प्रतिमाएं धारण की थीं। यहाँ पर समय-समय पर जैन समारोह होते रहते हैं। तिब्बत-चीन की सीमा की दक्षिणी-सीमा में हनुवर-देश में १०-१०, १५-१५ कोस पर जैन पन्थियों के अनेक नगर थे जिनमें अनेक जैन मंदिर थे। इसी हनवुर-देश के उत्तर में स्वर्ग के समान सुन्दर धर्माव नगर की उत्तर दिशा में एक विशाल वन है जिसमें तीन पंथियों, बीसपंथियों, तेतीस-पन्थियों त्रेपन-पंथियों अथवा अनेक पंथियों के जैन मंदिर हैं। इस अनुवर देश का राजा एवं प्रजा सभी जैनी हैं। इस देश की कुल आबादी कई लाखों में है। इस प्रदेश में जंगली जानवर अधिक हैं। अतः उनसे सुरक्षा के लिए नगर-कोट के द्वार पर एक प्रहर दिन रहते हुए भी बन्द कर दिये जाते हैं। यहाँ से ब्र. लामचीदास कैलाश (अष्टापद) पर्वत की पदयात्रा के लिये चल पड़े। जिसकी चर्चा पीछे की जा चुकी है। क्रमशः अगले अंक में बी - ५/४० सी, सेक्टर - ३४ धवल गिरी - नोएडा -२०१३०१ उ.प्र.
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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