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अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013 तथा कुछ समुद्री-टापुओं की यात्रा की थी और वहाँ के आंखों देखे तथ्यों का संक्षिप्त वर्णन किया था। इस पद-यात्रा में उन्हें २२ वर्ष लगे थे। उसका आँखों देखा रोचक वर्णन और अपने अनुभवों को उन्होंने अपनी “मेरी कैलाश-यात्रा” नामकी पुस्तिका में ग्रथित किया है। जो वी. नि. सं. २४८६ (सन् १९५६) में मेरठ शहर से प्रकाशित हुई थी। यह यात्रा-वृत्तान्त उसी प्रकार महत्वपूर्ण है, जिस प्रकार मेगास्थनीज, फाहियान, द्वेनत्संग, इत्सिंग एवं अलवेरुनी आदि विदेशी पर्यटकों के यात्रा-वृतान्त।
ब्रह्मचारी लामचीदास ने कैलाश पर्वत के यात्रा मार्ग में पद-पद पर जैन-मूर्तियों के अवस्थित रहने की चर्चा की है।
ब्र. लामचीदास के अनुसार पैकिंग नगर में तुनावारे जैनियों के ३०० जैन मन्दिर थे और उनके जैनागम चीनी-लिपि में लिखित थे।२३
उनकी यात्रा- विवरण के कुछ रोचक एवं सूचक तथ्य निम्न प्रकार हैं :१. को-चीन मुलुक की सीमा पर बहावल-पहाड़ की घाटी पर कोस २५० गये। इस
पहाड़ पर बाहूवली (प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव के द्वितीय पुत्र) की प्रतिमाएँ, खड़े योग (कायोत्सर्ग) मुद्रा में बड़ी-बड़ी ऊँची जगहों पर है। (ध्यातव्य है कि जैन इतिहास के
अनुसार बाहुबलि का राज्य इसी प्रदेश में था और जिसकी राजधानी तक्षशिला था) २. को-चीन मुल्क के वीदम-देश होवी-नगर इस देश में कई नगरों में आमेढना-जाति
के जैनी रहते हैं। इनकी प्रतिमाएँ सिद्ध (तीर्थकर के निर्वाण-कल्याणक) के
आकार (आकृति) की हैं। ३. चीन मुलुक के गिरगम-देश, ढांकुल नगर में यह यात्री (लामचीदास) गया।
इस देश की राजधानी इसी ढांकुल-नगर में है। यहां के राजा एवं प्रजा सभी जैनधर्मानुयायी हैं। ये सभी लोग तीर्थकर के अवधिज्ञान की पूजन करते हैं।
इन्हीं प्रतिमाओं की मनःपर्ययज्ञान तथा केवलज्ञान की भी पूजा करते हैं। ४. चीन मुलुक के पैकिन शहर में तुनावारे (जाति के) जैनियों के शिखरवन्द
३०० जिन-मन्दिर हैं जिनमें कायोत्सर्ग एवं पद्मासनी मुद्राओं में जिनेन्द्र मूर्तियाँ हैं। इनका एक हाथ पर केश-लोंच कर रहा है (अर्थात् ये मूर्तियाँ
दीक्षा-कल्याणक की हैं)। उक्त मंदिरों में स्वर्ण के चित्र बने हुए हैं। छत्र हरे पन्न एवं मोतियों के डिब्बेदार हैं। सोने-चांदी के कल्पवृक्ष बने हैं। इन मंदिरों में वनों की रचना है जो दीक्षा-कल्याणक के सूचक हैं।
तिब्बत-देश में श्रृंगार-देश के वरजंगल-नगर में लामचीदास के कथनानुसार वाघामारे जाति के ८००० जैन परिवार निवास करते हैं। उनके यहां पर तीन, पांच एवं सात गुंबज वाले २००० सुन्दर जैन मंदिर हैं। एक-एक मंदिर पर सौ-सौ, दो-दो सौ कलश सुशोभित हैं। इन