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अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013
इतिहासकार डॉ. कीथ का कथन :
प्राच्य भारतीय इतिहास के मर्मज्ञ डॉ. कीथ ने विदेशों में श्रमण जैन संस्कृति की लोकप्रियता और उसकी व्यापकता पर अच्छा प्रकाश डाला है। उनके अनुसार– “........ बेरिंग जलडमरुमध्य (Isthmus) से लेकर ग्रीनलैण्ड तक समस्त उत्तरी ध्रुवसागर के तटवर्ती क्षेत्रों में शायद ही ऐसा कोई स्थान बचा हो, जहाँ श्रमण-संस्कृति के अवशेष प्राप्त न होते हों।"
डॉ. कीथ आगे पुनः कहते है। कि - “साइबेरिया की तुर्क-जातियों के गमनागमन से यह श्रमण-धर्म तुर्किस्तान (वर्तमान टर्की) तथा मध्य-एशिया के अन्य देशों या उनके प्रदेशों में भी फैला। उसके अहिंसा, अपरिग्रह एवं विश्व-मैत्री के सिद्धान्तों ने मंगोलिया, चीन, तिब्बत और जापान को भी प्रभावित किया।"
“साइबेरिया के श्रमण-संस्कृति के रंग में रंगे हुए लोग प्रचुर मात्रा में बेरिंग जलडमरुमध्य को पार करके उत्तरी-अमेरिका के पश्चिमी पर्वतीय-क्षेत्र के किनारे-किनारे आगे बढ़ते गये
और इस प्रकार वे उत्तरी-अमेरिका में जा पहुँचे तथा उन्होंने वहाँ श्रमण-संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया।"
__ “आस्ट्रेलिया में ईसाई-धर्म तथा अफ्रीका में इस्लाम धर्म के प्रचार के पूर्व वहाँ के प्राचीन जातीय धर्मों पर भी श्रमणों के आत्म-ज्ञान-विज्ञान एवं जैनाचार का प्रभाव पड़ा और इस प्रकार उक्त दोनों द्वीपों में प्रभावक रूप से श्रमण-संस्कृति का प्रचार हुआ। किन्तु बाद में स्थितियाँ बदल गई।'
इस प्रकार एशिया, अमेरिका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और युरोप में श्रमण-संस्कृति की लोकप्रियता बढ़ी और परिवर्तित होती रही।"
जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है- ईसा पूर्व ३२६ के नवम्बर मास के लगभग सिकन्दरमहान् ने समकालीन (अखण्ड भारत के-) पंजाब के अटक के समीपस्थ तक्षशिला में पहुंचकर जब यह सुना कि यहां अनेक जिम्नोसोफिष्ट (नग्न जैन-साधु) एकान्त में रहकर कठोर तपस्या कर रहे हैं। तब जिज्ञासा-वश उसने (सिकन्दर ने) अपने अंशक्रेटस ;वदमेपातंजनेद्ध नामके एक विस्वस्त-पात्र को उन जिम्नोसोफिष्टों (नग्न श्रमण जैन साधुओं) को अपने पास बुला लाने हेतु भेजा। ___आज्ञाकारी उस अंशक्रेटस ने तत्काल ही जाकर उस साधु-संघ के आचार्य दोलामस क्नसंउनेद्ध को सिकन्दर का आदेश सुनाया और उसे सिकन्दर के पास चलने को कहा। अंशक्रेटस ने उसे यह भी बतलाया कि भेंट होने पर सिकन्दर उसे (आचार्य दोलामस को) पारितोषिक भी देंगे। किन्तु उपस्थित न होने पर वह (सिकन्दर) उस आचार्य (दौलामस) का सिर काटकर फेंक देगा।