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________________ 84 अनेकान्त 66/2, अप्रैल-जून 2013 ॥ घत्ता ।। सण वयही सयाणु जई, पर आइर तप्पर सवणो । मायावी माणी मग्ग चुओ, दव्वमूढ गुरु सेवगणो ॥ २० ॥ ॥ पद्धडिया ॥ पुणु खत्तमूढ गुरु गणि पवुत्तु, पुरगामि पायरि चेई अवासि अप्पणु देवलु कर देइ दव्वु सो खित्तमूढ गुरु जणि अयाणु गुरु कालमूढु भासमि सुणेहु, आहारु णिहारु अयालि जासु, अप्पणु मणि चिंतइ करइ सोइ, अहुणा परोक्ख गुरमूढ़ भेड, ras गुरु होउ चउत्थ कालि, मायाविय सेवइ णाण हीणु, गवि दीस अज्जु रिसीस विति, अविवेय ण जाणइ सव्व भेउ, सु-परोक्खमूढ यहु अवणि ठाणि गुर पयड मूढ भासह गणेसु अणुवय सु महव्वय वित्ति भेउ, तणि सुहमवत्थ वहुमुल्ल दव्वि कंचण उपयरण रयण दिवंत, जिह मग्गु णं धारण धेय चारु, विसवालस गिद्दा भुत दु ते पयड पिक्खि लोयहु समाणु, पिय मणि पिया मह कवण अम्हि पुणु लोयमूढु जणि भणिउ सोइ, जे मग्ग सिट्ठ अहवय पहाण, पिक्खा पिक्खी तिह भत्ति दाणु, वड मण्णहि एयह अम्मि कउण, तेलोड़ मूह गुर यह समग्ग, भवि किर धम्मु विवेय सारु, अपणु थिर थाइ सहि भुत्तु ॥ १ ॥ थिरु थाइ सया जम धम्मु भासि ॥ २ ॥ अप्पणु देवलु भणि मुणि सगव्यु ॥ ३ ॥ सिंह भाव विहूणउ करुण दाणु ॥ ४ ॥ दिणु इणि भमइ पोसइ सुदेहु ॥ ५ ॥ खडवस्स किया णवि कालि तासु ॥ ६ ॥ सो कालमूद गुरु मुणह लोइ ॥ ७ ॥ णसं आणि ण मुण्ड हेउ ॥ ८ ॥ खडसंहण सतित्त ण थाइ चालि ॥ ९ ॥ आभितारि भाउ ण मुणइ दीणु ॥१०॥ रिसि दीसहि भव्व विदेह खित्ति ॥ ११ ॥ सव्वह सामण्णइ अरुइ हेउ ||१२|| वहु वंधइ पाउ सु-धम्म हाणि ॥ १३ ॥ रुि णाण चरण बुझइ ण लेसु ॥ १४ ॥ ण वियाणइ किरिया कम्म हेउ ॥ १५ ॥ सिय रत्त पीय गहि गहिय गव्वि ॥ १६ ॥ रायाइ यसइ जणि कमुधिवंत ॥१७॥ विज्जाविहीण मउ पवर फारु ॥१८॥ ण वियाहि सिविणइ वित्ति सुट्ठ ।। १९ ।। अप्पणु मणि मण्णइ जणु सयाणु ॥ २० ॥ गुर पयउ मूढमउ घडइ तम्हि ||२१|| सव्वइ सम जाणइ गुणु ण कोइ ॥ २२ ॥ वि याण वुहियण रिसि अयाण ॥ २३ ॥ लोयहु पहि बल्ल णिरु सवाणु ।। २४ ।। यह वित्ति परंपर सुट्टु सउण ॥२५॥ अविवेई माणुस ते अभग्ग । २६ ।। सिय अत्थि णत्थि वाणी वियारु ॥ २७ ॥ अर्थ - १. जिन सूत्र में पाँच प्रकार की द्रव्य मूढ़ता कही गई है। उनका आदर करना, उन पर दया करना तथा उन्हें द्रव्यादि का दान देना इसी के भेद जानना चाहिए। पार्श्वस्थ, कुशील, संसक्त, अवसन्न एवं मृगचारी / स्वेच्छाचारी ये पांचों प्रकार के श्रमण जिन धर्म से पराड मुख कहे गये
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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