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अनेकान्त 66/2, अप्रैल-जून 2013 लोगों ने बड़े आदर पूर्ण मन से भरत का स्वागत किया। यह स्वागत और स्नेह उनकी आत्मीयता और सांस्कृतिक चेतना की सूचक है।
“त्रिकुट मलयोत्सड्.गे गिरौ पाण्डयकवाटके। जगुरस्य यशो मन्द्रमूर्छनाः किन्नराड्.गनाः।। xxxxxx
तमालवनवीथीपु संवरन्त्यो यदृच्छया।
मनोऽस्य जरारूढयौवनाः केरलस्त्रियः।।"२६ प्रस्तुत श्लोकों में केरल की सांस्कृतिक चेतना की संस्कृति का ही वर्णन किया गया है। न केवल, उत्सव, त्यौहारा, अपितु श्रेष्ठ और योग्य महान व्यक्तियों का सर्वत्र स्वागत और सत्कार होता है, यही हमारे सांस्कृतिक मूल्य है। ७. व्यक्तिवादी मूल्य :
प्रगति पथ की ओर अग्रसर होना व्यक्ति का आदिम स्वभाव है। व्यक्ति अपने व्यक्तिगत, विकास, आनन्द और श्रेय की प्राप्ति के लिए जिन मूल्यों का प्रयोग करता है - वे मूल्य व्यक्तिवादी मूल्य कहलाते हैं।
भरत के अपने व्यक्तिगत मूल्य थे जिनके अनुपालन से उन्होंने राष्ट्र और समाज की रक्षा की तथा सुरक्षा और सुव्यवस्था का राज्य स्थापित किया। एक दिन सभा में सिंहासन पर बैठे भरत ने राजाओं को धर्म का उपदेश दिया - कुल धर्म का पालन, बुद्धि का पालन, स्वयं की रक्षा, प्रजा की रक्षा करना और सामंजस्यता आदि धर्म के पांच स्वरूप हैं - कुलाम्नाय की रक्षा करना - तात्पर्य यह है कि कुल के आचरण, परम्परा और मर्यादा का पालन करना क्षत्रिय का धर्म है। संकट और आपदा के समय भी स्थित बुद्धि से न्याय और विवेक संगत निर्णय लेना - मत्यनुपालन (बुद्धि की रक्षा करना) धर्म है।
दुष्ट पुरुषों का विग्रह और शिष्ट पुरुषों का अनुपालन समंजसत्व गुण है। राजा को दुष्ट गुणों से युक्त पुत्र अथवा शत्रु दोनों का निग्रह करना चाहिए। उसे समाज दृष्टि से, भेदभाव त्याग कर समभाव से न्याय करना चाहिए। सामंजस्य का अर्थ ही समाज दृष्टि है। दुष्ट और शिष्ट का भेद यही है कि जो व्यक्ति हिंसा और पाप कमों से निरत रहकर अधर्म करते हैं, दुष्ट कहलाते हैं और जो व्यक्ति अहिंसा और सत्य मार्ग के अनुगामी होते हैं; क्षमाशील और संतोषी होत हैं - शिष्ट कहलाते हैं। यथा -
"तच्चेदं कुलमत्यात्मप्रजानामनुपानम् समज्जसत्वं चेत्येवमुदृिष्टं पंचभेदभाक्।। कुलानुपालन तत्र कुलान्मान्यनुरक्षणम्। कुलोचितसमाचार परिरक्षणलक्षणम्॥ २७ "धर्मो रक्षत्यपापयेभ्यो धर्मोऽभीष्टफलप्रदः। धर्मः श्रेयस्करोऽमुत्र धर्मेणेहाभिनन्दथुः।।१२८
"कृतात्मरक्षणश्रवैव प्रजानामनुपालने।