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अनेकान्त 66/2, अप्रैल-जून 2013 सहिष्णुता, त्याग, तप, दया, दान, अपनत्व, बंधुत्व, समन्वय और समता आदि ऐसे मानवीय गुण हैं जो नैतिकता की परिधि के अन्तर्गत आते हैं।
आदिनाथ तथा भरत ने भी समाज में नैतिकतावादी आचरण को अपनाने की शिक्षा दी है। ४. सौन्दर्यपरक मूल्य :
प्रकृति और पुरुष के जीवन में निहित वह अनन्त शक्ति, जो व्यक्ति के मन को अनन्त आनन्द की अनुभूति से संतृप्त करती है - सौन्दर्य कहलाती है। अतः अन्तर्मन का ऐसा सद्गुण जो चेतना के उज्ज्वलतम् भाव से सम्पूरित है -'सौन्दर्य' कहलाता है। महाकवि जयशंकर प्रसाद ने भी सौन्दर्य को मन की चेतना का उज्जवल वरदान कहा है -
"उज्जवल वरदान चेतना का, सौन्दर्य जिसे सब कहते हैं। जिसमें अनन्त अभिलाषा के
सपने सब जगते रहते हैं। ९२ वास्तव में सौन्दर्य किसी वस्तु अथवा व्यक्ति का ऐसा अदभुत आन्तरिक गुण है, जिसमें किसी भी प्राणी को सम्मोहित करने की असीम शक्ति निहित होती है। अस्तु सम्मोहन शक्ति ही सौन्दर्य है।
नारी के सौन्दर्य की श्रेष्ठता का अनुपम प्रमाण है। रंग-रूप की उज्ज्वलता का प्रकाश है। वाणी और नयन का सम्मोहित भाव है। देह की तन्वगी काया का आकर्षक रूप है। इस प्रकार लावण्य सम्मोहन शक्ति है।
“लावण्यम्बुधौ पुंसु स्त्रीप्वस्यामेव संभृतम्।
यत्प्राप्ताः सरितः सर्वास्तमेतां सर्वपार्थिवाः।।१३ ५. धार्मिक मूल्य :
जीवन में शुचिता और पवित्रता बनाए रखने के लिए मानव जिन सर्वमान्य आचार-संहिता का जीवन में अनुपालन करता है, वे आदर्श नियम और आचार-संहिता 'धर्म' की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं। 'धर्म' जीवन को सुखी, संपन्न और सम्माननीय बनाने वाली जीवन-शैली है। सामाजिक व्यवस्था, सुरक्षा और जीवन में समत्व स्थापित करने के लिए धर्म आवश्यक है। ___आदिपुराण में भी धर्म की व्याख्या और गुण बताए गए हैं। धर्म वही है जिसका मूल दया हो और संपूर्ण प्राणियों पर अनुकम्पा करना ही दया है। दया की रक्षा के लिए क्षमा आवश्यक है। इन्द्रियों का दमन करना, क्षमा धारण करना, हिंसा नहीं करना, तप, दान, शील, ध्यान और वैराग्य ये दयारूप धर्म के चिह्न हैं। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह का त्याग सब सनातन धर्म कहलाते हैं।
'दयामूलो भवेद् धर्मो दया प्राण्यनुकम्पनम्। दयायाः परिरक्षार्थः गुणाः शेषाः प्रकीर्तिता।।
अहिंसा सत्यवादित्वमचौर्य त्यक्तकामता। निष्परिग्रहता चेति प्रोक्तो धर्मः सनातनः।।१४