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________________ अनेकान्त 66/2, अप्रैल-जून 2013 डॉ. डब्ल्यू एम. अरवर के अनुसार "Value is that which satisfies the human desire. "" 62 प्रोफेसर ई. डी. चार्ल्स के अनुसार "Value is a conception, explicit or implicit or distinctive of an individual or characteristic of a group of the desirable which influenced the relationship from a variable modes, means and of action. "7 अतः स्पष्ट है कि जीवन में सुख, शांति, ऐश्वर्य और यश की प्राप्ति के लिए व्यक्ति जिन सद्गुणों के माध्यम से समाज का हित चिन्तन करता है - वे सद्गुण ही जीवन-मूल्य कहलाते हैं। आचार्य जिनसेन ने आदिपुराण में निम्न मूल्यों पर विचार पल्लवित किए हैं: १. मानवतावादी मूल्य प्रत्येक चिंतनशील कवि और कलाकार अपनी कृति के मूल में मानवता के कल्याण का भाव लेकर ही कृति की संरचना करता है। उसकी कृति का मूल उद्देश्य मानव जाति का कल्याण है। अस्तु जन कल्याण का भाव ही मानवता है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के शब्दों में “मानवता उदात्त मन के संवेदनशील समाज सुधारक की अन्तश्चेतना का मुकुलित पुष्प है। व्यक्ति के मन की उदारता पुण्य फल है। यदि हम किसी गरीब और अभाव ग्रस्त व्यक्ति की तन से, मन से और धन से सेवा कर रहे हैं तो यह सच्ची मानव सेवा है; भगवान की पूजा है। १९८ आदिपुराण में भी सब जातियों और धर्मों, वर्णों और सम्प्रदायों में सामंजस्य और समन्वय स्थापित करने के लिए व्यक्ति के जीवन के लिए तीनों गुणों का होना अनिवार्य माना गया है। "सत्येव दर्शने ज्ञानं चारित्रं च फलप्रदम् । ज्ञानं च दृष्टिसच्चर्यासांनिध्ये मुक्तिकारणम् ।। चारित्रं दर्शनज्ञानविकलं नार्थकृन्मत् । प्रपातायैव तद्धि स्यादन्धस्येव विवल्गतम्॥" तात्पर्य यह है कि सत्य, दर्शन, ज्ञान और चरित्र व्यक्ति को फल प्रदाता है। सम्यक् दर्शन और चारित्र से ही मुक्ति की प्राप्ति होती है। इनसे रहित ज्ञान से मुक्ति प्राप्त नहीं होती है। २. राष्ट्रीय मूल्य : राष्ट्र के विकास और संरक्षण के लिए व्यक्ति जिन गुण धर्मों का नियमन और पालन करता है, 'राष्ट्रीय मूल्य' कहलाते हैं। "राष्ट्रीय प्रत्येक जागरूक और चिन्तनशील व्यक्ति के व्यक्तित्त्व का अभिन्न अंग है। राष्ट्र के गौरव, सम्मान और स्वाभिमान के प्रति समर्पित भाव ही राष्ट्रीयता है। राष्ट्र की वायु, प्रकाश, जल, धरती और आकाश की अनन्त सम्पदा का उपयोग करते हुए
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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