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अनेकान्त 66/2, अप्रैल-जून 2013 भोजी जीवों के लिए सुखदायी कहते हैं, मानो वे अग्निशिखाओं के मध्य जलते हुए वन में फलों की आशा रखते हैं।
अहिंसाव्रत रक्षार्थ मूलव्रत विशुद्धये।
निशायां वर्जयेद्मक्तिमिहामुत्र च दुःखदाम्।। यशस्तिलकचम्पूगत उपासकाध्ययन के कथनानुसार अहिंसा व्रत की रक्षा के लिए इस लोक और परलोक में दुःख देने वाली रात्रि भोजन का त्याग कर देना चाहिए। मौन पूर्वक भोजन करने से तप एवं संयम की वृद्धि होती है और भोजन के प्रति लोलुपता कम होती है। अतः व्रती श्रावक को नियम से मौनपूर्वक भोजन करना चाहिए। संदर्भः १. भव्योपदेश उपासकाध्ययन-श्रावकाचार, भाग-३, पृ.३७६ २. लाटी संहिता, पृ.-५, वही ३. वही, श्लोक ४७ एवं २८, पृ.९, वही ४. रात्रौ भुंजानानां यस्मादनिवारिता भवति हिंसा।
हिंसा विरतैस्तस्माव्यक्ति भुक्ति रवि। रागा द्युदय परत्वाद निवृत्ति तिवर्तते हिंसा। रात्रि दिवमाहरतः कथं हि हिंसा सम्भवति।।
पुरुषार्थसिद्धयुपाय।श्लोक १२९ एवं १३० श्रावकाचार भाग एक।। ५. स्वामिकार्तिकेयानुपेक्षागत श्रावकाचार- श्लोक ८१ ६. श्राद्धं दैवतं कर्म स्नान दानं न चाहुतिः।
जायते यत्र कि तत्र नराणां भोक्तुमर्हति।।२६।। धर्मसंग्रह श्रावकाचार, पृष्ठ-१२३ ७. भंजते निशि दुराशा यके गृद्धि दोष वश वर्तिनोजनाः।।४३।। अमितगति श्रावकाचार ८. वल्लभते दिननिशिथयोः सदा यो निरस्त यम संयम क्रियाः।
श्रंग, पुच्छ शफ संग वर्जितो मण्यते पशुवयं मनीषिभिः।।४४।। अमितगति श्रावकाचार ९. किसनसिंह कृत क्रिया कोष (श्रावकाचार संग्रह भाग-५) संपादक- पं. हीरालाल शास्त्री
श्लोक (पद) २८, पेज-१६५ १०. वही, पेज-१६७, पद-६६ ११. धर्मसंग्रह श्रावकाचार, श्लोक-२६, पृष्ठ-१२३ (श्रावकाचार संग्रह भाग-२, संपादक-वही) १२. हेल्थ एण्ड डाइट (लेखक-स्वामी शिवानंद जी), पृष्ठ-२६० १३. किसनसिंह कृत क्रियाकोश, दोहा-१६, पृष्ठ-१६४ १४. मार्कण्डेय पुराण, अध्याय-३३, श्लोक-५३ १५. योग वाशिष्ठ, श्लोक-१०८
- ( लेखक की सद्य-प्रकाशित नवीन कृति "जैनधर्म का वैज्ञानिक चिन्तन" से साभार)