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अनेकान्त 66/2, अप्रैल-जून 2013
वास्तविक सूर्य डूब जाने के बाद भी दो घड़ी या ४८ मिनट तक उसका आभासी प्रतिबिंब आकाश में दिखाई देता रहता है। सूर्य के इस आभासी प्रतिबिंब में दृश्य किरणों के साथ अवरक्त लाल किरणे एवं अल्ट्रा वायलेट किरणें नहीं होती है। वे केवल सूर्योदय के ४८ मिनट बाद आती हैं और सूर्यास्त के ४८ मिनट पूर्व ही समाप्त हो जाती हैं। उक्त कारण से दो घड़ी सूर्योदय के पश्चात् भोजन करने का विधान सुनिश्चित किया गया है।
इसी प्रकार वैष्णव धर्म में सूर्य ग्रहण के काल में भोजन करने का निषेध किया गया है, इसका भी वैज्ञानिक पहलू है। सूर्य ग्रहण के समय, उक्त दोनों प्रकार की अदृश्य किरणों की अनुपस्थिति दृश्य प्रकाश में रहती है। इन दोनों प्रकार की किरणों (इन्फ्रारेड एवं अल्ट्रावायलेट) के गर्म स्वभाव के कारण भोजन को पचाने की क्षमता होती है। कृत्रिम तेज प्रकाश का यदि वर्णक्रम देखें तो स्पष्ट होता है उनमें ये दोनों की किरणें नहीं पाई जाती हैं।
जैनधर्म में जमीकंद को अखाद्य या अभक्ष्य क्यों बताया गया है? उसका भी बड़ा वैज्ञानिक कारण है। जहाँ सूर्य की किरणें नहीं पहुँच पाती वहां असंख्यात सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। जमीन के अन्दर अंधकार में होने वाले,, आलू मूली, अरबी आदि कंदमूलों में असंख्यात सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति हो जाने से उनका त्याग बताया गया है।
एक बात और अनुभव में आती है कि रोगी का रोग रात्रि में ज्यादा तकलीफदेह हो जाता है। रोगी का दिन आसानी से व्यतीत हो जाता है लेकिन रात्रि तामस होने के कारण वह रोग को बढ़ा देती है। दिन सात्विक होता है जो रोग में फायदा पहुंचाता है। अतः रात्रि में भोजन करना हानिकारक है। हमारे शरीर में सात्विक, राजस एवं तामस ये तीन गुण पाए जाते हैं। इनमें सात्विक गुण प्राकृतिक होता है। जबकि राजस और तामस वैकृतिक या वैभाविक परिणति वाले माने गये हैं। दिन में भोजन करने से प्राकृतिक सात्विक गुण की वृद्धि होती है। जिससे पुरुष में ज्ञान, बुद्धि, मेधा, स्मृति आदि गुणों का विकास होता है तथा रात्रि में भोजन करने से तामस गुणों की वृद्धि होती है जिससे व्यक्ति के अन्दर विषाद, अधर्म, अज्ञान, आलस्य और राक्षसी वृत्ति का जन्म होती है। रात्रि में खाया हुआ भोजन तामसी परिणामों का दाता होता है।
वैदिक और वैष्णव धर्म में रात्रि भोजन निषेध -
१. जो मद्य पीते हैं, मांस भक्षण करते हैं, रात्रि के समय भोजन करते हैं तथा कंद भोजन करते हैं उनके तीर्थयात्रा करना, जप-तप करना, एकादशी करना, जागरण करना, पुष्कर स्नान या चन्द्रायण व्रत रखना आदि सब व्यर्थ हैं। वर्षाकाल के चार मास में तो रात्रि भोजन करना ही नहीं चाहिए। अन्यथा चन्द्रायण व्रत करने पर भी शुद्धि नहीं होती है। (ऋषिवर भारत वैदिक दर्शन) २. वैदिक ग्रन्थ यजुर्वेद आह्निक में लिखा है
पूर्वान्हे भुज्यते देवैर्मध्यान्हे ऋषिभिस्तथा। अपरान्हे च पितृभिः सायाद्वे दैत्य दानवैः।।२४।।