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________________ अनेकान्त 66/2, अप्रैल-जून 2013 भोजन पकते समय भोज्य की गंध वायु में फैलती है, उस वायु के कारण उन पात्रों में अनेक जीव आकर पड़ते हैं। अतः दयाधर्म पालन करने वाले पुरुषों को, रात्रि भोजन को विष मिले अन्न के समान मानकर सदा के लिए त्याग कर देना चाहिए। रात्रि भोजन के पाप से मनुष्य नीच कुलों में दरिद्री के रूप में उत्पन्न होता है। उस पाप से अनेक दोषों से परिपूर्ण राग द्वेष से अंधी, शील रहित, कुरूपिणी और दुख देने वाली स्त्री मिलती है। बुरे व्यसनों में रंगे हुए पुत्र और क्लेश देने वाले भाई बन्धु मिलते हैं। वह भव-भव में दरिद्री, कुरूप, लंगड़ा, कुशीली, अपकीर्ति फैलाने वाला, बुरे व्यसनों को सेवन करने वाला, अल्पायु वाला, अंग-भंग शरीर वाला, दुर्गतियों में जाने वाला, कुमार्ग मागी और निंद्य होता है। अतः रात्रि में आहार का त्याग कर देने से वह अपनी इंद्रियों को वशीभूत करके संयमी बनता है। ७. जो पुरुष सूर्य के अस्त हो जाने पर भोजन करते हैं, उन पुरुषों को सूर्य द्रोही समझना चाहिए। जैसा कि धर्म संग्रह श्रावकाचार में कहा गया है - यो मित्रेऽस्तंगते रक्ते विदध्याभोजनं जन। तद् द्रोही स भवत्पापः शवस्योपरिचाशनम्।।२६।। रात्रि भोजन निषेधः वैज्ञानिक दृष्टिकोण - सूर्य प्रकाश पाचन शक्ति का दाता है। जिनकी पाचन शक्ति कमजोर पड़ जाती है, उसके लिए डॉक्टर की यही सलाह है कि वह दिन में हल्का भोजन करें। उसके लिए रात्रि में भोजन करने का निषेध किया जाता है। रात्रि के समय हृदय और नाभि कमल संकुचित हो जाने से भुक्त पदार्थ का पाचन गड़बड़ हो जाता है। भोजन करके सो जाने पर वह कमल और भी संकुचित हो जाता है और निद्रा में आ जाने से पाचन शक्ति घट जाती है। आरोग्य शास्त्र में भोजन करने के बाद तीन घंटे तक नहीं सोना चाहिए। सूर्य के प्रकाश में नीले आकाश के रंग में सूक्ष्म कीटाणु स्वतः नष्ट हो जाते हैं। रात्रि में कृत्रिम प्रकाश जितना तेज होता है उसी अनुपात में सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति उतनी ही अधिक होती है जो भोजन में गिर जाते हैं जिससे हिंसा का पाप तो लगता ही है साथ ही अनेक असाध्य रोग पेट में उत्पन्न हो जाते हैं। सूर्य के प्रकाश में अल्ट्रावायलेट किरणे एवं अवरक्त लाल किरणें होती हैं। जिस प्रकार एक्स-रे मांस और चर्म को पार कर जाती हैं उसी प्रकार उक्त दोनों प्रकार की किरणें कीटाणुओं के भीतर प्रवेश कर उन्हें नष्ट करने की शक्ति रखती हैं। यही कारण हैं कि दिन में सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति नहीं होती है। उक्त दोनों प्रकार की किरणें सूर्य के दृश्य प्रकाश के साथ रहती हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि ऑक्सीजन प्राण वायु होती है श्वास लेने में लाभकारी और उपयोगी है तथा कार्बनिक गैसें हानिकारक होती हैं, वृक्ष दिन में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कार्बोनिक गैसों का अवशोषण करके ऑक्सीजन गैस का उत्सर्जन करते रहते हैं। इस प्रकार दिन में पर्यावरण शुद्ध और स्वस्थ्यकर रहता है जबकि रात्रि में वृक्ष कार्बोनिक गैसों को
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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