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________________ 44 अनेकान्त 66/2, अप्रैल-जून 2013 वनस्पतियों में कीड़े एवं अन्य सूक्ष्म जीवों की बहुलता रहती है। चूंकि वनस्पतियां शैशव अवस्था में होती हैं अतः उनमें कई प्रकार के अपरिपक्व रसायनिक तत्व होते हैं जो कि सेवन करने पर हानिकारक हो सकते हैं। अतः प्रत्येक दृष्टिकोण से उक्त माह में वनस्पतियों का सेवन हानिकर है। रात्रि भोजन - वर्तमान में वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि सूर्यास्त होते ही वातावरण अनेक प्रकार के सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। इनमें कुछ विशेष प्रकार की फफूंद एवं वैक्टीरिया प्रमुख हैं जो कि स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होते हैं। उक्त उदाहरण तो अल्पमात्र है। अगर समूचे जैनधर्म के सिद्धान्तों का अवलोकन करें तो पाते हैं कि वहाँ हर कदम पर पर्यावरण संरक्षण पर विचार किया गया है एव सुखी जीवन यापन हेतु उचित एवं पाप रहित नियम बताये गये हैं। जैन साधु तो वास्तव पर्यावरण संरक्षण के महान् प्रतीक हैं। जिनके किसी भी क्रिया-कलापों से पर्यावरण का कोई भी सिद्धान्त नष्ट नहीं होता है। - वानस्पतिकी अध्ययनशाला, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर-४७४०११ (म.प्र.)
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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