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अनेकान्त 66/2, अप्रैल-जून 2013 इसी से मनीषियों ने जिनवाणी के माहात्म्य को दर्शाते हुए सतत ज्ञानार्जन करने की प्रेरणा दी है। यदि सुख चाहते हो तो श्रुताभ्यास द्वारा अपने ज्ञान का प्रकाश जाग्रत करो;
___ 'परिजन धन कुछ न चले, मरण समय में साथ।
ज्ञान अडिग निज की निधि, भव-भव जावे साथ।।" वस्तुतः श्रुताभ्यास के बिना चित्त स्थिर शान्त और शुभ ध्यान नहीं होते, विषयों की चाहरूपी दावाग्नि शान्त न होने से संसार-शरीर-भोगों से वैराग्य नहीं होता, हिताहित विवेक जाग्रत नहीं होता, पारमार्थिक हित की बात नहीं समझती और सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति भी नहीं हो पाती; जबकि आपत्ति-विपत्ति सुख-दुःख, देश-विदेश, घर-बाहर, सभी जगह जन्म-जरा-मृत्यु-निवारक एकमात्र यह सम्यग्ज्ञान ही हमारे लिए शरणभूत बन्धु/मित्र होता है। जगत के सुख का कारण भी यही है ओर मोक्ष-प्रदाता भी यही है। इसी से मनीषियों ने सतत् स्वाध्याय करते हुए अपने अज्ञान को दूर करने की प्रेरणा दी है।३७
'श्रुत' देववाणी-जिनवाणी है जो गुरुओं के माध्यम से हम तक आयी है। अतः देव और गुरुओं की भाँति श्रुत भी हमारे आराध्य हैं। इनकी आराधना हेतु आचार्य भगवन्तों ने शास्त्रों में इसकी विधि/मर्यादाएँ सुनिश्चित की हैं, काल और अकाल की भी विवेचना की है। कब? कहाँ? कैसे? क्या? पढ़ना-पढ़ाना सुनना-सुनाना, व्याख्यान करना आदि। स्वाध्यायकाल - अहोरात्रि में चार काल स्वाध्याय के बतलाये गये हैं :(१) पूर्वाह्न का स्वाध्यायकाल - सूर्योदय के ४८ मिनिट के बाद से मध्याह्न के ४८ मि. पहले तक काल पूर्वाह्न का स्वाध्याय काल है। (२) अपराह्न का स्वाध्यायकाल - मध्याह्न के ४८ मिनिट के बाद से सूर्यास्त के ४८ मि. पहले तक का काल 'अपराह्न का स्वाध्यायकाल" कहलाता है। (३) पूर्वरात्रि का स्वाध्यायकाल - सूर्यास्त के ४८ मिनिट बाद से अर्धरात्रि के ४८ मि. पहले तक का काल 'पूर्वरात्रि का स्वाध्यायकाल' कहलाता है। (४) अपर रात्रिक स्वाध्यायकाल - अर्ध रात्रि के ४८ मि. बाद से सूर्योदय के ४८ मि. पहले तक का काल “अपररात्रिक स्वाध्यायकाल" कहलाता है।
इन चार कालों में यथानुकूल समय निर्धारित कर श्रुताभ्यास करने का विधान शास्त्रों में पाया जाता है। रात्रि में सिद्धान्त ग्रन्थों के स्वाध्याय का पूर्ण निषेध है। अस्वाध्यायकाल - उपर्युक्त चार सन्धिकाल अस्वाध्याय के काल हैं।
अर्थात् (१) सूर्योदय के ४८ मि. पहले से ४८ मि. बाद तक का काल। इसे “गौसर्विक काल" कहा जाता है। (२) मध्याह्न के ४८ मि. पहले से ४८ मि. बाद तक का काल। इसे प्रादेषिक काल कहते हैं। (३) सूर्यास्त के ४८ मि. से ४८ मि. बाद तक काल। इसे भी "प्रादोषिक काल या गोधूलि काल" कहा जाता है और चौथा(४) मध्यरात्रि के ४८ मि. पहले से ४८ मि. बाद तक का काल। इसे “ वैरात्रिक काल" कहा जाता है। - इन चारों सन्धिकालों में स्वाध्याय करना निषिद्ध है। इन कालों में तीर्थकर भगवानों की दिव्यध्वनि खिरती है। अतः ये चारों सन्धिकाल स्वाध्याय के लिए उचित नहीं है। मध्याह्न में अध्ययन/