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________________ अनेकान्त 66/2, अप्रैल-जून 2013 'स्त्रीणां शतानि शतशोजनयन्ति पुत्रान् नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता। सर्वाः दिशो दधति भानि सहस्ररश्मि प्राच्येव दिग्जनयति स्फुरदंशुजालम्॥२० अर्थात् सैकड़ों स्त्रियाँ पुत्रों को उत्पन्न करती हैं, किन्तु अन्य किसी माता ने तुम जैसे पुत्र को उत्पन्न नहीं किया है। सभी दिशायें नक्षत्रों को धारण करती हैं, किन्तु पूर्व दिशा ही चमकदार किरणों वाले सूर्य को उदित करती हैं। निमित्त कारणा की सामर्थ्य की स्वीकार्य - आचार्य कुमुदचन्द्र एवं आचार्य मानतुंग भक्ति को एहिक एवं पारलौकिक फलप्राप्ति में कार्यकारी मानते हुए निमित्त की सामर्थ्य को स्वीकार करते हैं।आचार्य कुमुदचन्द्र कहतेहैं - 'धर्मोपदेशसमये सविधानुभावादास्तां जनो भवति ते तरुरप्यशोकः। अभ्युद्गते दिनपतौ समहीरुहोऽपि किं वा विवोधमुपयाति न जीवलोकः।।२१ हे प्रभो! आपके धर्मोपदेश के समय जो समीप आता है, उस मानव की बात तो रहने दो, वृक्ष भी अशोक (शोक रहित) हो जाता है। क्या सूर्य के उदित हो जाने पर वृक्षों के साथ जीवों का समूह जागरण को प्राप्त नहीं हो जाता है ? अर्थात् हो ही जाता है। आचार्य मानतुंग भी निमित्त कारण की शक्ति को स्वीकार करते हुए कहते हैं - _ 'अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम्। यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति तच्चाम्रचारुकलिकानिकरैक हेतुः।।२२ विद्वानों के हास्य के पात्र अल्पज्ञानी मुझको तुम्हारी भक्ति ही जबरन वाचाल बना रही है। वास्तव में जो कोयल बसन्त ऋतु में मधुर शब्द करती है, वह आम की सुन्दर कलियों के कारण ही है। आचार्य मानतुंग द्वारा प्रयुक्त ‘किल' एवं 'एकहेतु' शब्द निमित्त की कार्यकारिता का दृढ़तापूर्वक समर्थन करते हैं। आराध्य के नाम-स्मरण का प्रभाव - प्रायः लोग ऐसा कहा करते हैं कि नामस्मरण रूप भक्ति में क्या रखा है? किन्तु वे यह भूल जाते हैं कि गाली का नाम सुनकर जब हमें क्रोध एवं प्रशंसा सुनकर हर्ष उत्पन्न हो जाता है, तो प्रभु के नामोच्चारण का प्रभाव न पड़े, ये कैसे हो सकता है? आचार्य नामस्मरण के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहते हैं -
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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