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________________ जैनधर्म में शिक्षा व्यवस्था - डॉ. शिव कुमार शर्मा वर्तमान की जड़ें अतीत में विद्यमान रहती हैं। भारत का अतीत गौरवमय रहा है, इससे वर्तमान आलोकित हुआ है और भविष्य के प्रति आस्था उपजी है। भारत का अतीत सामाजिक सांस्कृतिक तथा आर्थिक कारकों से उतना प्रभावित नहीं रहा है जितना कि यहां की संस्कृति ने उसे प्रभावित किया है। यहां पर मानव का जीवन-दर्शन “सर्वभूत हिते रताः" रहा है। यहां की संस्कृति ने विश्व बन्धुत्व तथा अतिमानवता का स्वप्न देखा है, स्वप्न को साकार किया है। अनादि काल से शिक्षा, भारत में स्वयं के लिये नहीं, अपितु धर्म के लिए प्राप्त की जाती थी। यह मुक्ति और आत्म-बोध का साधन थी और जीवन का महान् लक्ष्य मुक्ति था। डॉ. अल्तेकर के अनुसार - “वैदिक युग से लेकर अब तक शिक्षा, प्रकाश के स्रोत के रूप में रहा है- और वह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारा मार्ग आलोकित करता रहा है। प्राचीनतम वैदिक काव्य के जन्म से ही हम भारतीय साहित्य को पूर्णरूपेण धर्म से प्रभावित देखते हैं। डॉ. एफ.डब्ल्यु. थामस ने लिखा है - "भारत में शिक्षा कोई नई बात नहीं है। संसार का कोई भी देश ऐसा नहीं है, जहाँ पर ज्ञान के प्रेम की परंपरा, भारत से अधिक प्राचीन एवं शक्तिशाली हो। शिक्षा ज्ञान है और वह मनुष्य का तीसरा नेत्र है।" ज्ञानम् तृतीयं मनुजस्य नेत्रम्"। शिक्षा समुदाय या व्यक्त्यिों द्वारा परिचालित वह सामाजिक प्रक्रिया है, जो समाज को उसके द्वारा स्वीकृत मूल्यों एवं मान्यताओं की ओर अग्रसर करती है। सांस्कृतिक विरासत और जीवन के ज्ञान का अर्जन ही शिक्षा है। जैन दर्शन में द्रव्य की विस्तृत व्याख्या की गयी है। द्रव्यों के प्रकार एवं गुणों का जितना विशद् वर्णन जैन दर्शन में मिलता है,उतना अन्यत्र नहीं। आत्मा और काल द्रव्य के जिस स्वरूप एवं गुणधर्म की चर्चा जैन दर्शन में की गयी है, उस पर वैज्ञानिकों का ध्यान आकृष्ट हो चुका है। जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित मनुष्य जीवन के अन्तिम उद्देश्य के बारे में लोग एक मत हो या न हो परन्तु उसके द्वारा निश्चित आचार संहिता से आज सारा संसार सहमत है। इस आचरण की शिक्षा हेतु जैन दर्शन ने शिक्षा को आवश्यक माना है। शिक्षा संस्थान -“शिक्षा के केन्द्रों में आश्रम एवं विद्यालयों का वर्णन पार्श्वनाथ-चरित में हुआ है। आश्रम नगर से दूर वन के शान्त वातावरण में होते थे। कमठ नगर-निर्वासन के बाद जिस आश्रम में पहुंचा वह इसी तरह का शिक्षण संस्थान जान पड़ता है। यह आश्रम पोदनपुर नगर से दस योजन दूर भूताचल पर्वत पर स्थित था। इन आश्रमों में केवल तपस्वी लोग ही शिक्षित नहीं थे, वरन् वहाँ के पशुपक्षी भी शिक्षित थे। । काव्यों में तीन प्रकार की शिक्षा संस्थाओं का उल्लेख मिलता है। प्रथम वे जो तपस्वियों के आश्रम में गुरुकुल के रूप में प्रवर्तमान थी। इस प्रकार की शिक्षा संस्थाओं में
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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