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अनेकान्त 65/2, अप्रैल-जून 2012
६. धवला टीका - वीरसेनाचार्य। ७. श्रुतावतार - इन्द्रनन्दि। ८. श्रुतावतार, पद्य १३२-१३३, इन्द्रनन्दि।
तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा, डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य, भाग-२, पृ. ५२ १०. षट्खण्डागम की शास्त्रीय भूमिका, डॉ. हीरालाल जैन, पृ. ३४ ११. श्रुतावतार, पद्य १४३-१४४, इन्द्रनन्दि। १२. धवला, वीरसेनाचार्य, पृ. ७१-७४ १३. धवला, वीरसेनाचार्य, पृ. २० ।
१४. श्रुतावतार, पद्य १३७, इन्द्रनन्दि। १५. षट्खण्डागम की शास्त्रीय भूमिका, डॉ. हीरालाल जैन, पृ.८८ १६. श्रुतावतार, पद्य १३७-१३९, इन्द्रनन्दि। १७. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य, भाग-२, पृ. १३ १८. The Jaina Sources of the History of Ancient India, p.114 १९. श्रुतावतार, प १३९, इन्द्रनन्दि।
-शोध अध्येता, जैन-बौद्ध दर्शन विभाग
संस्कृतविद्या धर्म विज्ञान संकाय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी (उ.प्र.)
बोधकथा
भाग्य की देवी और दुर्भाग्य का देवता भाग्य की देवी और दुर्भाग्य के देवता में बहस छिड़ी कि उनमें कौन ज्यादा खूबसूरत है? फैसला के लिए एक स्त्री को चुना गया। वह भी पशोपेश में हो गी। यदि भाग्य की देवी को सुन्दर बताते हैं तो दुर्भाग्य का देवता उसके जीवन को तबाह कर देगा और यदि दुर्भाग्य के देवता को सुन्दर कहती हूँ तो भाग्य की देवी उसे छोड़कर चली जायेगी।
उसने एक उपाय सोचा कि फैसला लेने के पहले आप दोनों घर में एक बार प्रवेश करें और थोड़ी देर रहकर बाहर आयें। दोनों परेशान, यह कौन सा तरीका है बुलाने का? आखिर में स्त्री ने अपना फैसला सुनाया
"भाग्य की देवी तब ज्यादा सुन्दर लगती है, जब घर में प्रवेश करती हैं और दुर्भाग्य का देवता तब ज्यादा सुन्दर लगता है जब वह घर से जा रहा होता है। कथन सही और व्यावहारिक था। दोनों इस फैसले से संतुष्ट भी थे। क्योंकि सुन्दरता का विशेषण दोनों के साथ जोड़कर उन्हें देखा गया, अन्तर केवल सापेक्षता का था।
-संकलित