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________________ प्राकृत पूजा : एक अनुशीलन - डॉ. उदयचन्द जैन प्रत्येक व्यक्ति सुसंस्कृत संस्कारों की सरिता के प्रवाह में स्नान करना चाहता है। वह जीवन के विकास के लिए कोई न कोई हेतु बनाता है, वह परम पावन पवित्र आत्मा का चिन्तन करता है, वह अंतरंग की दृष्टि की ओर उन्मुख होकर उन भव्यात्माओं के जीवन की ओर लक्ष्य बनाता है, जो इस संसार से पार हो गए, जिन्होंने जन्म-मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है या जो उनके मार्ग पर चल रहे हैं, उन्हें स्मृति में लाता है, उन्हें विविध रूपों में स्मरण करता है तथा महागुणी बनने या आत्मा से परमात्मा बनने के लिए जो भी क्रिया करता है वही गुणकीर्तन है, वही पूजा है, स्तुति है या आराधना है। जिसे वह किंचित् समय की सीमा में नहीं बांधता, अपितु सदैव उन गुणों की प्राप्ति के लिए किसी न किसी तरह का उद्यम करता है। वह इष्टसिद्धि, शिष्टाचार, मानसिक शुद्धि, वाचिक प्रशुद्धि और कायिक शुद्धि आदि के लिए जो भी पुरुषार्थ करता है उसमें उसका निश्चित उद्देश्य होता है। पूजा एक महान् साध्य है, जिसका उद्देश्य भी महान् है। वह पर से परम पद पर स्थित होने के लिए सर्वप्रथम परमेष्ठियों का स्मरण करता है। हमारे आगमों, षट्खण्डागम आदि ग्रन्थ, प्रवचनसार जैसे पाहुडों आदि में उल्लेख भी आता है। अरहंत, सिद्ध आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पांचों पावन हैं, इनका मार्ग है पवित्र। इसलिए साधक इनके गुणों का श्रद्धापूर्वक आदर-सत्कार करता है। यही प्रवृत्ति है पूजा। 'गुणेषु प्रशस्त रागो पूजा'- गुणों में प्रशस्त राग होना पूजा है। पूजा नमस्यापचितिः सपर्या र्हणाः समाः। (अमरकोष २/३५) पूजा, नमस्करण, अपचिति, सपर्या, अर्चा, अर्हणा, आदि पूजा के पर्यायवाची हैं। पूजा- पूजनं पूजा, पूजायां धातु से 'अड्.' प्रत्यय होने पर पूजा। नमस्या- नमस्करणं नमस्या, नमस्+य+अ+आ अपचिति- अप+चाय (चि)+ति-अपचिति-निर्दोष गुण स्तवन। सपर्या - सपर-पूजायां, सप+य+अ+आ-सपर्या-गुणज्ञ प्रशंसा। अर्चा - अर्च्-पूजायां, अर्च्+अ+आअर्चा-गुणानुवाद। अर्हणा - अर्ह - पूजायां - अहूं-यु+आ-अर्हणा - गुणादर। कृति, स्तवन,कीर्तन, भक्ति, श्रृद्धा, आदर, उपासना, वंदना, स्तुति, स्तव, स्तोत्र, नुति, ध्यान, चिंतन, अर्चना, प्रणाम, नमोतु आदि पूजा के पर्याय हैं। आरती, दृष्टि, श्रद्धार्चना, विनती, गीति उपासना भी इसके नाम हैं।
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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