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________________ अनेकान्त 65/2, अप्रैल-जून 2012 तालुगत रोग, कुण्टक नामक कीड़े से गले का रोग, बाल से स्वरभंग तथा जहरीले सर्प इत्यादि रात्रिभोजन के साथ शरीर में प्रवेश जो जाए मृत्यु तक हो जाती है। प्राचीन समय में धार्मिक वातावरण के कारण आचार्यों ने धार्मिक कारणों को उपस्थित करके रात्रिभोजन का निषेध किया। परन्तु इन धार्मिक कारणों की पृष्ठभूमि में शारीरिक स्वास्थ्य और धार्मिक क्रियाएं दोनों का समावेश था क्योंकि व्यक्ति रात्रिभोजन के कारणों से अस्वस्थ हो जाता है तो वह जब तक स्वस्थ नहीं होगा तब तक उसका धार्मिक आचरण और क्रियाएं दोनों में अवरोध उत्पन्न होता है। इस प्रकार रात्रिभोजन त्याग के विषय में आचार्य अमितगति जी ने अमितगति श्रावकाचार में कहा है कि जो पुरुष मन, वचन, काय से रात्रिभोजन का परित्याग करके सदा ही दिन में भोजन करता है पाप से रहित उस पुरुष का रात्रि में भोजन के परित्याग से आधा जन्म उपवास के साथ व्यतीत होता है। इस प्रकार रात्रि में किये जाने वाले भोजन में अनेक प्रकार के जीव जन्तुओं की हिंसा होती है। जो धर्म, मानवता और स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुचित है, ऐसे भोजन की प्रक्रिया को अहिंसकाहार में परिगणित नहीं किया जा सकता। योगों में अहिंसकाहार - भारतीय दर्शनों विशेषतः जैनदर्शन में मन, वचन, काय की प्रवृत्ति को योग कहा है। योग की जितनी सूक्ष्मता से जैनदर्शन व्याख्या तथा पालन करने को कहता है उतना अन्य दर्शनों में अनुपलब्ध है। जैनदर्शन, योगों से अहिंसकाहार करने का उपदेश देता है। मन से अहिंसकाहार जैनदर्शन कहता है कि किसी प्राणी को मन में हिंसकाहार के प्रति विचार नहीं करना चाहिए और यदि वह हिंसकाहार के प्रति अपने मन को लगाता है तो वह हिंसकाहार करने का भागीदार है। वह पूर्ण रूप से अहिंसक नहीं कहला सकता। जैसे- जैनशास्त्रों में स्वयम्भूमरण द्वीप में रहने वाला महामत्स्य के कान में रहने वाला तण्डुल मत्स्य महामत्स्य के सोते रहने पर विचार करता है कि इस मूर्ख के सोते रहने पर सारी मछलियाँ मुख से बाहर जा रही हैं मैं होता तो एक भी मछली को नहीं जाने देता। इस प्रकार के मन में विचार करने से वह तण्डुल मत्स्य भी महामत्स्य के समान सातवें नरक में जाता है। वचन से अहिंसकाहार - __ वचन संबन्धी आहार में दोष के लिए उदाहरण आता है कि कोई व्यक्ति मांसाहार या तामसिक आहार कर रहा है और अहिंसकाहार का पालन करने वाला व्यक्ति उस हिंसकाहार की वचनों से प्रशंसा करता है तो वह भी हिंसकाहार में पाप का सहभागी होता है। इस कारण वचनों से भी हिंसकाहार की प्रशंसा नहीं करना चाहिए। काय से अहिंसकाहार - काय से अहिंसकाहार सर्वविदित है कि कोई भी व्यक्ति अपने शरीर के माध्यम से हिंसक वस्तुओं का सेवन करता है तो वह पाप का भागीदार तो है ही, परन्तु हिंसक वस्तुओं का सेवन अपने शरीर के माध्यम से किसीदूसरे व्यक्ति को कराता है तो भी वह अहिंसक
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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