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________________ जैन चर्या में अहिंसकाहार नहीं है। इसलिए अहिंसकाहार का पालन करने वाले को कृत, कारित, अनुमोदना तथा मन, वचन, काय इन नौ कोटियों से अहिंसकाहार को अपनाना चाहिए। आहार की आवश्यकता - __प्रत्येक प्राणी को जीवन प्रिय तथा मरण अप्रिय लगता है। जीवन के लिए आवश्यक सामग्री में आहार प्रमुख है, क्योंकि आहार ही जीवों के विचार को परिवर्तित तथा परिवर्धित करता है, तथा आहार से जहां शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है वहीं मानसिक स्वास्थ्यता में भी लाभ होता है। हमारे शरीर के स्वस्थ निर्माण व विकास के लिए ८० प्रतिशत क्षारीय एवं २० प्रतिशत अम्लीय आहार की आवश्यकता होती है। इन तत्त्वों के समानुपात से जैन विद्युत चुम्बकीय जीवन शक्ति का निर्माण व संवर्धन होता है। जो कि शुद्ध अहिंसक आहार से प्राप्त हो सकता है। शरीर के लिए प्राचीन काल से ही बलवर्धक आहार ग्रहण करने का निर्देश दिया गया है। जहाँ मुनियों को आहार दान देने का निर्देश है वहीं आहार देते समय दाता को निर्देश दिया गया है कि वह साधुओं को गुणकारी, बलवर्धक तथा आरोग्यवर्धक आहार दान दे। अतः बलवर्धक आहार के लिए शास्त्र हिंसा रहित भोजन करने को कहते हैं। आहार में आयुर्वेदाचार्यों ने किस महिने किस वस्तु का सेवन नहीं करना चाहिए इसके लिए निर्देश दिया है कि चैते गुड़, वैशाखे तेल, जेठे राई, आषाढ़े बेल, सावन निब्बू, भादो मही, क्वार करेला, कार्तिक दही। अगहन जीरा, पूसे धना, माघ मसूर, फागुन चना, जो नर इन बारह को खाय, बिना निमंत्रण स्वर्गे जाय। जो व्यक्ति इस भक्ष्य पदार्थों को इन महिनों में सेवन करता है तो वह अस्वस्थ्य हो जाता है तथा इनका उक्त महिनों में सेवन नहीं करने वाले के घर वैद्य कभी नहीं आता। आचार्यों ने जीवों को भक्ष्य पदार्थों में भी काल मर्यादा करने के बाद हमारे घरों में शाकाहारी अभक्ष्य वस्तुओं का आना प्रारंभ हो गया है। जिसे हम शाकाहारी वस्तुओं में गिन कर सेवन कर लेते हैं परन्तु वह वस्तु वस्तुतः नहीं खाने योग्य है। आचार्य उमास्वामी जी ने पके हुए आहार में सावधानी बरतने का निर्देश देते हुए कहा है कि- “सचित्तसंबंध संमिश्राभिषव दुःपक्वाहार" अर्थात् जीवों से युक्त शाकाहारी पदार्थ, सचित्त संबन्धित भोजन, सचित्त जीवों से मिश्रित भोजन, प्रमादवर्धक भोजन तथा ठीक रीति से नहीं पके हुए अथवा दुबारा पकाये गये भोजन को व्रतियों को ग्रहण नहीं करना चाहिए तथा सचित्त कमल आदि के पत्ते ढके गये भोजन, सचित्त पत्ते ढका गये भोजन को ग्रहण करना निषिद्ध माना है। भक्ष्याभक्ष्य - प्रकृति के पास देने के लिए सब कुछ है। खाने-पीने की सामग्री से लेकर रोजमर्रा की सभी आवश्यकताएं प्रकृति हमें देती है। हम प्रकृति के एक महत्त्वपूर्ण घटक हैं। इसलिए
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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