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________________ 35 जैन चर्या में अहिंसकाहार वाली एलजीमरस बीमारी से बचने में यह सहयोगी होता है। २. राजसिक आहार - राजसी आहार शरीर में पेप्टिक अल्सर, आंतों का कैंसर, अपचन आदि बीमारियाँ पैदा करता है। अतः जैन मुनि इस आहार को लेने से मना करते हैं। इस आहार में कड़वे, खट्टे, लवण युक्त, गरिष्ठ भोजन, तले, भुने व्यंजन, ये सब राजसिक भोजन में आते हैं, जो खाने में अच्छे लगते हैं परन्तु इसमें पौष्टिक तत्त्वों का अभाव रहता है। ३. तामसिक आहार - तामसिक आहार के लिए जैन ग्रंथों ने निषेध किया गया है। तामसिक आहार में चटपटा भोजन, बासी, जूठा, मांस, मच्छी, अण्डा, मदिरा आदि पदार्थ आते हैं। इन पदार्थों के उपयोग से मानव हिंसक, झगड़ालू, क्रोधित, परस्पर जलन की भावनाओं से पीड़ित रहता है। वैज्ञानिक खोजों से पता चलता है कि जानवर को जब काटा जाता है तो उसके मन के भाव जैसे डर, लालच, हिंसक प्रवृत्ति कटे हुए मांस में केमिकल्स के द्वारा चले जाते हैं और खाने वाले व्यक्ति पर यह केमिकल्स इसी तरह का प्रभाव छोड़ते हैं। तामसिक भोजन से गैस के रोग, अपन्डीसाइटिस, गस्ट्रोएन्ट्राइटिस आदि रोग पैदा होने का डर लहता है। रेड मांस आहार से १०० से अधिक रोग शरीर को ग्रसित कर सकते हैं। सात्विक, राजसिक और तामसिक आहार में भी चार भेद पाये जाते हैं। ये चार प्रकार खाद्य, लेय, पेय, स्वाद्य हैं। खाने योग्य पदार्थों को खाद्य, चाटने योग्य पदार्थों को लेय, पीने योग्य पदार्थों को पेय तथा चखने योग्य पदार्थों को स्वाद्य कहते हैं। रात्रि भोजन अहिंसकाहार नहीं - जैनधर्म में रात्रिभोजन के विषय में कहा है कि सूर्यकिरणों में भोजन करने के साथ-साथ रोशनी में बना भोजन ग्रहण करना चाहिए अन्यथा सूर्य किरणों के अभाव में बनाया गया भोजन, प्रोटीन आदि अवयव प्रदान नहीं कर पाते और वह भोजन भी रात्रि में भोजन करने के समान माना गया है। आचार्यों ने सूर्योदय के ४८ मिनिट बाद और सूर्यास्त के ४८ मिनट पहले के काल को छोड़कर शेष काल को रात्रि की संज्ञा दी है तथा इसमें भोजन करना रात्रिभोजन करना कहलाता है। रात्रिभोजन त्याग करके ही मानव प्रत्येक नई बीमारियों से बच सकता है, क्योंकि वह दिवा भोजन में बाहर से आ रहे जीव जन्तुओं से तो अपना भोजन का बचाव कर सकता है परन्तु रात को सूक्ष्म जीव नहीं दिखते जिनकी उत्पत्ति मात्र अंधकार में होती है और वे हमारे भोजन में आकर हमारे स्वास्थ्य को खराब कर जाते हैं। __ वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जैनधर्म में रात्रिभोजन त्याग सिद्धांत के विषय में जो मन्तव्य प्राप्त होते हैं वहीं आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी रात्रिभोजन त्याग को स्वास्थ्य के लिए लाभदायक सिद्ध किया है। जैनधर्म में जहाँ अन्य जीवों की हिंसा के कारण रात्रिभोजन का निषेध किया है वही स्वास्थ्य ध्यान रखते हुए पं. आशाधर जी ने सागार धर्मामृत में रात्रिभोजन से होने वाले दोषों के विषय में कहते हैं कि यदि रात्रिभोजी के शरीर के अन्दर भोजन के साथ जू का प्रवेश हो जाए तो जलोदर रोग, मकड़ी और छिपकली से कुष्ठरोग, मक्खी से वमन उल्टी, बिच्छू से
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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