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________________ 31 जैनदर्शन में पुरुषार्थ का स्वरूप एवं उसकी महत्ता वीरियं उवओगो य एयं जीवस्स लक्खणं । उत्तराध्ययन २८ . ११ ४. व्याख्याप्रज्ञप्ति, २.१०.९ ३. व्याख्याप्रज्ञप्ति, २०.३.१ ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति, १४.५ सूत्र १० से २० ७. जैनदर्शनसार, प्रथम अध्याय ८. जैनदर्शनसार (अवन्तिका टीका समन्वित), डॉ. नरेन्द्र कुमार शर्मा, हंसा प्रकाशन, जयपुर, ६. व्याख्याप्रज्ञप्ति १२.५.११ पृष्ठ ५ ९. समयसार १.४ १०. कामशब्देन संपशनरसनेन्द्रियद्वयं भोग शब्देन प्राणचक्षुः श्रत्रत्रयं तेषां कामभोगानां बन्धः सम्बन्धस्तस्य कथा (-समयसार १.४, जयसेनाचार्य कृत तात्पर्यवृत्त्राि टीका) ११. बन्धशब्देन प्रकृति स्थित्यनु भागप्रदेशवन्धास्तत्फलं च नरनारकादिरूपं भव्यते। समयसार १.४ जयसेनाचार्यकृत तात्पर्यवृत्ति टीका । १२. द्रष्टव्य समयसार अनुशीलन, भाग-१, डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल कृत १.४ की व्याख्या । १३. द्रष्टव्य समयसार कलश, वीर सेवा मंदिर, २१, दरियागंज, नई दिल्ली -२ के बाबू लाल जैन की प्रस्तावना १४. उत्तराध्ययन ३.१ १५. सुइं चं लद्धं सुद्धं च वीरियं पुण दुल्लहं- उत्तराध्ययन ३.१० १६. से णं भंते । संजमे किं फले? - अणण्यफले- स्थानांग सूत्र ३.३.४१८ १८. आचारांग, १५.२.१५५ १९. आचारांग, १.४.४.१४३ १७. स्थानांग सूत्र ४.२.३५१ २०. आचारांग, १.२.१.६८ २३. सूत्रकृतांग १.२.१.१३ २१. आचारांग, २.१.१०७ २२. उत्तराध्ययन, १८.३३ २४. सूत्रकृतांग १.२.२.१५ २५. पमायं कम्म्माहंसु, अप्पमायं तहावरं । तब्भावादेसतो वा वि, बालं पंडितमेव वा ।। सूत्रकृतांग १.८.३ २६. उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन २९ २७. उत्तराध्ययन सूत्र ? ३०.६ २८. अधिक विस्तार के लिए द्रष्टव्य- "जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण डॉ. श्वेता जैन, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, पृ. ५११ २९. अधिक विस्तार के लिए द्रष्टव्य- "जैनदर्शन में कारण कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण' पुस्तक का षष्ठम अध्याय । - अतिथि अध्यापक, संस्कृत विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर (राज.)
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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