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________________ अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012 55 सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र - ये तीनों मिलकर मोक्ष के मार्ग हैं। आचार्य उमास्वामी ने ‘तत्त्वार्थसूत्र’ ग्रन्थ में सर्वप्रथम मोक्षमार्ग का ही उल्लेख किया है“सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः " १ १. जैनदर्शन में मति, श्रुति, अविध, मनः पर्याय और केवल - ये पांच ज्ञान माने गए हैं। “मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानम्।” २ जैनदर्शन के प्रमुख सिद्धान्त भारतीय इतिहास में जैनदर्शन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भिन्न-भिन्न दार्शनिकों ने अपनी-अपनी स्वाभाविक रुचि परिस्थिति या भावना से वस्तुतत्त्व को जैसा देखा उसी को उन्होंने दर्शन के नाम से कहा । किन्तु किसी भी तत्त्व के विषय में कोई भी तात्त्विक दृष्टि ऐकान्तिक नहीं हो सकती है। सर्वथा भेदभाव या अभेदवाद, नित्यैकान्त या क्षणिकैकान्त एकान्तदृष्टि है। जैनदर्शनानुसार प्रत्येक वस्तु अनेक धर्मात्मक है और कोई भी दृष्टि उन अनेक धर्मों का एक साथ प्रतिपादन नहीं कर सकती है। इस सिद्धान्त को जैनदर्शन ने अनेकान्त और स्याद्वाद के नाम से कहा है । जैनदर्शन का मुख्य उद्देश्य स्याद्वाद सिद्धान्त के आधार पर विभिन्न मतों का समन्वय करना है। विचार जगत का अनेकान्त ही नैतिक जगत् में अहिंसा का रूप धारण कर लेता है । अतः भारतीय एवं अभारतीय पाश्चात्य दर्शनों के इतिहास को समझने के लिए जैनदर्शन का विशेष महत्त्व है। पूर्वमीमांसा दर्शन - ‘मीमांसा' शब्द का अर्थ है - पूजित विचार । अर्थात् किसी वस्तु के स्वरूप का यथार्थ वर्णन।“मीमांस्यते विचार्यते अवगृहीतोऽर्थो विशेषरूपेण अनया इति मीमांसा” जिसके द्वारा ग्रहण किया अर्थ विशेष रूप से मीमांसित किया जाता है अर्थात् विचारा जाता है वह मीमांसा है। वेद के दो भाग हैं- कर्मकाण्ड तथा ज्ञानकाण्ड । यज्ञयागादि की विधि तथा अनुष्ठान का वर्णन कर्मकाण्ड का विषय है और जीव, जगत् तथा ईश्वर के रूप और परस्पर सम्बन्ध का निरूपण ज्ञानकाण्ड का विषय है। इन दोनों में दिखाई पड़ने वाले विरोधों को दूर करने के लिए मीमांसा की प्रवृत्ति होती है। मीमांसा के दो भेद हैं- कर्ममीमांसा और ज्ञानमीमांसा । कर्मविषयक विरोधों का समाधान करती है कर्ममीमांसा तथा ज्ञान विषयक विरोधों का समाधान करती है ज्ञानमीमांसा । कर्ममीमांसा या पूर्वमीमांसा के नाम से अभिहित दर्शन 'मीमांसा' कहलाता है। ज्ञानमीमांसा या उत्तरमीमांसा के नाम से अभिहित दर्शन 'वेदान्त' कहलाता है। मीमांसा का मुख्य तात्पर्य 'समीक्षा' है। पूर्वमीमांसा दर्शन के मूल प्रवर्तक वेदव्यास के शिष्य 'जैमिनी ऋषि' थे, जिन्होंने ईसा पूर्व ‘२००' में ‘जैमिनिसूत्र' की रचना की । पूर्वमीमांसा में तीन मत प्रचलित हैं- (क) कुमारिल भट्ट का ‘भाट्टमत’, (ख) प्रभाकर मिश्र का 'प्राभाकरमत' या 'गुरुमत', (ग) मुरारी मिश्र का ‘मिश्रमत’। कुमारिलभट्ट या ‘भाट्टमत' की अपेक्षा - पदार्थ दो हैं - भाव व अभाव । भाव चार हैंहैं- द्रव्य, गुण, कर्म व सामान्य । अभाव चार हैं- प्राक्, प्रध्वंस, अन्योन्य व प्रत्यक्ष। द्रव्य
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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