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अनेकान्त 65/3, जुलाई-सितम्बर
९. आचार्य विद्यानंद-धर्म दर्शन और अध्यात्म, जैन बोधक पत्रिका, सितम्बर,२००८ १०. एवमन्तधर्मता विलसति सर्वतो पि तत्त्वस्य। मूरास्तां खलतायास्तरमादभिमितिरेकान्तस्य।
प्रसिद्धानतु विवुधस्य सिद्धिरनेकान्तस्य। सुदर्शनोदय महाकाव्य- आचार्य ज्ञानसागर, ६/४,
पृ.९१ ११. आचार्य देवेन्द्र मुनि- जैनदर्शन : स्वरूप और विश्लेषण, पृ. २३३ १२. आचार्य तुलसी- राजपथ की खोज, पृ.६७ १३. आचार्य देवेन्द्र मुनि-जैनदर्शन : स्वरूप और विश्लेषण, पृ. २४१ १४. आचार्य देवेन्द्र मुनि-जैनदर्शन : स्वरूप और विश्लेषण, पृ. २४२ १५. वीरोदय महाकाव्य- ज्ञानसागर आचार्य, १९/१३, पृ. १८७ १६. आचार्य तुलसी- राजपथ की खोज, पृ. ७० १७. आचार्य विद्यानंद-धर्म दर्शन और अध्यात्म, जैन बोधक पत्रिका, सितम्बर,२००८ १८. आचार्य विद्यासागर- समग्र, जैन गीता, श्लोक-६७० १९. आचार्य विद्यासागर-समग्र, जैन गीता, श्लोक-७२१ २०. आचार्य ज्ञानसागर- जयोदय महाकाव्य, २/८१ २१. आचार्य ज्ञानसागर-वीरोदय महाकाव्य, १९/२० २२. आचार्य महाप्रज्ञ- अनेकान्त है तीसरा नेत्र, पृ. ६८ २३. आचार्य महाप्रज्ञ-अनेकान्त है तीसरा नेत्र, पृ.७१ २४. आचार्य विद्यानंद- जैन धर्म में राष्ट्रधर्म बनने की क्षमता है, जैन बोधक, अक्टूबर-२००७ २५. आचार्य विद्यानंद-संतमहिमा, जैन बोधक, सितम्बर, २००४ २६. आचार्य महाप्रज्ञ-जैन दर्शन की मूलभूत आवश्यकताएँ, पृ. १५९
- वरिष्ठ शोध अध्येता, जैन विश्व भारतीय विश्वविद्यालय,
लाडनूं (राजस्थान)