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________________ १८ अगस्त- समाधि दिवस पर विशेष लेख आचार्य श्री शांतिसागर जी एवं श्रमण परंपरा : कल आज और कल - प्राचार्य पं. निहालचंद जैन शांतिसागर योगीन्द्रं, नरेन्द्रामर वन्दितम्। आचार्यवर्य सड्घेशं, जैनधर्म प्रभावकम्॥ २०वीं शताब्दी में निर्ग्रन्थ दिगम्बर श्रमण परंपरा को पुनजीवित करने वाले आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज ऐसे लोकोत्तर व्यक्तित्व हुए, जिन्होंने अपनी नर देह से ऐसी अकल्पनीय तप साधना की, जिससे लोगों को यह विश्वास करने के लिए विवश होना पड़ा कि इस ससीम देह से संकल्प की असीम लोकोत्तर साधना भी की जा सकती है। अपने सम्यक्चारित्र के रथ पर आरूढ़ होकर, विवेक की वल्गा हाथों में थामकर, श्रुत-अश्वों को जीवन की अन्तर्यात्रा पर गतिशील बनाकर साधना के राजपथ पर चल पड़े थे। जीवन्त समयसार, रत्नत्रय त्रिवेणी के प्रयागराज, आत्मविद्या के धनी युगप्रवर्तक, जैन संस्कृति एवं श्रमण धर्म के संरक्षक आप प्रथम दिगम्बराचार्य थे। भूमिपति और पाटील नाम से विख्यात आपकी पूर्व नौ पीढ़ियों में वीतराग शासन के प्रभावक नररत्न हुए जिन्होंने जैन समाज को गौरवान्वित किया। राजवंश सदृश क्षत्रिय वंश की चतुर्थ जाति में श्री शांतिसागर का जन्म हुआ। बेलगाँव (दक्षिण भारत) जिलान्तर्गत भोजग्राम के सद्गृहस्थ भीमगौड़ा एवं माँ सत्यवती की कुक्षि से सन् १८७२ आषाढ़ कृष्णा ६ तिथि को अपने मामा के घर येलगुल ग्राम में एक पुण्यशाली बालका का जन्म हुआ, नाम संस्करण- सातगौडा किया गया। यही बालक स्वनामधन्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर के नाम से विश्रुत हुआ। आप जब गर्भ में थे, माँ सत्यवती को १०८ सहस्रदलवाले कमलों से जिनेन्द्रदेव की पूजन करने का शुभदोहला हुआ था। कोल्हापुर के समीप राज्य सुरक्षित सरोवर से बड़े प्रयत्न करके ऐसा कमल मंगाकर भक्तिभाव से पूजन कर, उन्होंने संतुष्टि पायी थी। बाल्यावस्था - __ मुनि श्री वर्धमानसागर जी (आचार्य श्री के गृहस्थावस्था के बड़े भाई) ने कहा था - “मैंने बालक सातगौड़ा को बचपन में रोते नहीं देखा। खानपान में अन्य बालकों की भांति स्वच्छंदवृत्ति नहीं थी।शरीर बल में कोल्हापुर जिले में उनकी जोड़ कोई दूसरा नहीं था। चावल का पूरा बोरा कन्धे पर रख लेते थे। हृष्टपुष्ट बैलों द्वारा खींची जाने वाली पानी की मोट (रहट)
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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