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________________ अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011 71 उल्लेख प्राप्त होता है। वर्तमान में मंत्रशास्त्र पर विद्यानुवाद-विद्यानुशासन, मन्त्रानुशासन आदि ग्रंथ लिखे गये हैं। भैरव पद्मावती कल्प, सरस्वती कल्प, ज्वालिनी कल्प आदि अनेक कल्पग्रंथ भी रचे गये हैं जिनमें मंत्रों की जानकारी प्राप्त होती है। भक्तामरस्तोत्र विषयक मंत्र, कल्याणमन्दिरस्तोत्र के मंत्र, पार्श्वनाथ स्तोत्र के मंत्र, गणधरवलय, भूवलय, पुण्याहवाचन, सकलीकरण आदि और भी मंत्रविषयक साहित्य उपलब्ध होता है। पूजक की यह भावना होती है कि वह प्रभु को अपना यथेष्ट पदार्थ समर्पित कर लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है, परन्तु समस्या यह है कि वह हो कैसे, किस माध्यम से यह कार्यकारी बने? समीपस्थ उपलब्ध सभी माध्यमों में ध्वनि ही एक ऐसा माध्यम है, जिसके स्पन्दन से उच्चारणकर्ता के भाव का तथा भावान्तर्गत क्रिया का परिवर्तन हो जाता है और उससे अलौकिक उपलब्धि के अवरोध दूर होते हैं, जिससे लक्ष्य सुगम होता जाता है। इसलिए पूजक को चाहिए कि वह पूजन को उस तरह हृदयंगम कर बोले कि मंत्रोच्चारण मंत्रध्वनिपूर्वक समर्पित की जाने वाली द्रव्य के पूर्व वह पात्रता को प्राप्त कर ले। अवगत हो कि द्रव्य और बोली जाने वाली पूजा मंत्र नहीं है अपितु मंत्र के प्रयोग के पूर्व की तैयारी है। सम्बन्धित मंत्र लक्ष्यभूत शक्ति से संपन्न मातृकाओं से संश्लिष्ट पिण्ड है, जिसकी ध्वनि के स्पन्दन के माध्यम से क्रियात्मकता उत्पन्न होती है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि पूजा में मंत्रों की उसी तरह उपयोगिता है जिस तरह शरीर में आत्मा की। मंत्रों के बिना पूजा, पूजा नहीं कही जा सकती। मंत्रों से ही पूजा में दिव्यता प्रगट होती है। मंत्राश्रित पूजा के माध्यम से चैतन्य की ओर बढ़ा जा सकता है। पूजा में वीतरागी देवों के आश्रित मंत्रों की साधना से सभी लौकिक एवं पारलौकिक कार्यों की सिद्धि हो जाती है। पूजा में प्रयुक्त मंत्रों की शक्ति अचिन्त्य है। पूजा में हम भक्तिवश प्रवृत्तिपरक कुछ भी बोल लें, परन्तु मंत्रों के माध्यम से द्रव्य का समर्पण अलौकिक उपलब्धि के लिए ही होता है। शास्त्रों में लौकिक उपलब्धि के लिए मंत्रों का प्रयोग वर्जित माना गया है। पूजा बोलते हुए भक्त भटक न जाये इसलिए पूजा के मन्त्र मुक्तिपथ की ओर बढ़ने के लिए उसमें संकल्पशक्ति को जागृत करते हैं। इस प्रकार पूजा में मंत्रों की अत्यधिक उपयोगिता है। संदर्भ : 1. तं जहा दाणं पूयाशीलमुववासो चेदि चउव्विहो सावय धम्मो। -जयधवला, टीका, 1.82 2. पद्मनन्दि पञ्चविंशतिका, 6.15-16 3. रत्नकरण्डश्रावकाचार, 119 महापुराण, 67.193 वही, 38.26 एवं सागारधर्मामृत, 1.18, 2.25-29 आदि 6. वसुनन्दि श्रावकाचार, 381 7. स० श0 31 8. वेदान्तसार, पृष्ठ 4 9. डॉ. ने. च. शास्त्री, मंगलमंत्र णमोकार एक अनुचिंतन आमुख, पृष्ठ 10 10. अकारादिक्षकारान्ता वर्णाः प्रोक्तास्तु मातृकाः।
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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