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________________ 6 अनेकान्त 64/1 जनवरी-मार्च 2011 पं. चैनसुखदास स्मृति व्याख्यान माला प्राचार्य प्रोफेसर (डॉ.) शीतलचन्द्र जैन शास्त्री के आमंत्रण पर मुझे रविवार 23 जनवरी 2011 को श्री दिगम्बर जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय जयपुर द्वारा आयोजित पं. चैनसुखदास न्यायतीर्थ स्मृति व्याख्यानमाला में 'श्रमण और वैदिक संस्कृति का तुलनात्मक विश्लेषण' विषय पर व्याख्यान का अवसर मिला। इसकी अध्यक्षता जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय लाइन की कुलपति प्रोफेसर समणी चारित्रप्रज्ञा ने की थी। उनके साथ मेरे मित्र डॉ. जिनेन्द्र जैन भी उपस्थित थे। जयपुर के विशिष्ट बुद्धिजीवियों एवं श्रमण संस्कृति संस्थान के छात्रों के बीच मैंने अनुभव किया कि यदि विविध संस्कृतियों की समानता के पक्ष को उजागर किया जाये तो समाज में सौमनस्य का वातावरण बनेगा तथा इससे देश का बहुमुखी विकास हो सकेगा। प्रो. समणी चारित्रप्रज्ञा ने जैन धर्म के सभी संप्रदायों में सामाजिक ऐक्य एवं सौमनस्य पर बल दिया। एक आदर्श पंचकल्याणक 4 फरवरी से 10 फरवरी 2011 तक श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र वहलना ( मुजफ्फरनगर) में परमपूज्य उपाध्याय श्री नयनसागर जी महाराज के पावन सान्निध्य में उन्हीं की पावन प्रेरणा से निर्मित 31 फीट उत्तुंग पार्श्वनाथ भगवान् के जिनबिम्ब का पंचकल्याणक महोत्सव संपन्न हुआ। इस अवसर पर मुनिवर श्री वैराग्य सागर जी की भी मंगल उपस्थिति रही। इस आयोजन में प्रशासन का प्रशंसनीय सहयोग मिला। विशेषरूप से डॉ. चन्द्रभूषण त्रिपाठी, नगर मजिस्ट्रेट तथा उनकी अर्धांगिनी डॉ. अंजना त्रिपाठी ने जो सहयोग प्रदान किया उसे शब्दों की सीमा में बाँधना संभव नहीं है। वे लगभग प्रतिदिन स्वयं उपस्थित रहे। जिलाधिकारी महोदय ने कहा कि 40-50 हजार की भीड़ वाली जन्मकल्याणक की शोभायात्रा जिस संयम से चली, वह जैन समाज के लोगों में ही संभव है। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समिति को श्री शांतिनाथ युवा संघ, मुनीम कालोनी, मुजफ्फरनगर के स्वयंसेवकों ने जो अभूतपूर्व सहयोग दिया, वह न केवल काबिले तारीफ है, अपितु अनुकरणीय एवं पुरस्करणीय भी है। मैंने अपने जीवन में इतना अच्छा सुव्यवस्थित पंचकल्याणक महोत्सव न तो देखा है और न सुना है। मैं क्षेत्र के सभी पदाधिकारियों, संयोजक श्री राजकुमार जैन नावला वाले एवं संचालक श्री रवीन्द्र कुमार जैन वहलना वाले और श्री पुनीत जैन को हार्दिक धन्यवाद देना अपना पावन कर्तव्य समझता हूँ। जयकुमार जैन
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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