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________________ 58 अनेकान्त 64/1 जनवरी-मार्च 2011 मंजूर करते हुए हम हुक्म देते हैं कि भादों के इन बारा मजहबी ऐय्याम में जो (जैन हिन्दुओं) के मुकद्दश और इबादती ऐय्याम है। इनमें किसी किस्म की कुरबानी या किसी भी जानवर को हलाक करने की मुमानियत होगी। और इस हुक्म की तामील न करने वाला मुजरिम तसव्वर होगा। यह फरमान दवामी तसव्वर हो दस्तखत मुबारिका, शहंशाह जहाँगीर (मुहर ) " वास्तव में जहांगीर एक रहमदिल इंसान था। उसको प्रकृति के विविध रूपों से गहरा प्यार था। अतः उसके दरबार में कलाकारों ने अपनी कोमल तूलिका से बादशाह को प्रिय पुष्पों, पशु-पक्षियों के चित्र बहुलता से चित्रण किए हैं। मंसूर ने तो चौपायों और पक्षियों के चित्रांकन में ही अपनी कला को समर्पित कर दिया था। जहांगीरकालीन 'मुर्गे का चित्र' जो आज कलकत्ते की आर्टगैलरी की शोभा है, के सौंदर्य को तो आज तक कोई भी चित्रकार मूर्त रूप नहीं दे पाया है। बादशाह अकबर की उदार नीति शाहजहाँ के राज्यकाल के पूर्वार्ध तक पुष्पित होती रही है। पूर्तगाली यात्री सेवाश्चियन मानदिक के यात्रा विवरण से यह ज्ञात होता है कि शाहजहाँ के मुस्लिम अफसरों ने एक मुसलमान का दाहिना हाथ इसलिए काट डाला था कि उसने दो मोर -पक्षियों का शिकार किया था और बादशाह की आज्ञा थी कि जिन जीवों का वध करने से हिन्दुओं को ठेस पहुंचती है, उनका वध नहीं किया जाए। 7 प्रायः यह धारणा हो गई है कि करुणा की वाणी को रूपायित करने वाले इस प्रकार के अस्पताल मुसलमान शासकों के समय में समाप्त हो गए थे। किन्तु समय-समय पर भारत में भ्रमण के निमित्त पधारने वाले पर्यटकों के विवरणों ने इस धारणा को खंडित कर दिया है। सुप्रसिद्ध पुर्तगाली यात्री ड्यूरे बारवोसा (जो 1515 ई. में गुजरात में आया था), ने जैन अहिंसा के स्वरूप पर बारीकी से प्रकाश डालते हुए इस सत्य की सम्पुष्टि की है कि जैन धर्मानुयायी मृत्यु तक की स्थिति में अभक्ष्य (माँस इत्यादि) का सेवन नहीं करते थे। उसने जैनियों की ईमानदारी का उल्लेख करते हुए कहा कि वे किसी भी जीव की हत्या को देखना तक पसन्द नहीं करते। उसने राज्य द्वारा मृत्युदण्ड प्राप्त हुए अपराधियों को भी जैनसमाज द्वारा बचाने के प्रयासों का उल्लेख किया है। उसने जैन समाज की पशु-पक्षियों (यहां तक कि हानिप्रद जानवरों) की सेवा का उल्लेख एवं उनके द्वारा निर्मित अस्पतालों और उनकी व्यवस्था का उल्लेख भी किया है।" सुप्रसिद्ध पर्यटक पीटर मुंडे ने भी अपने यूरोप एवं एशिया के भ्रमण (1608-1667) में पशु-पक्षी चिकित्सालयों को देखा था। कैम्वे में उसने रुग्ण पक्षियों के लिए जैनों द्वारा बनाए गए अस्पताल का विवरण सुना था। उसके यात्रा वृत्तांतों में अनेक पर्यटकों के नामों का उल्लेख है जिन्होंने गुजरात में जैनों द्वारा समर्पित अस्पतालों (जिन्हें 'पिंजरापोल' कहा जाता है) का भ्रमण किया था।" एल. रूजलैट ने भी अपनी पेरिस से प्रकाशित पुस्तक में जैनों की पशु-संपदा के प्रति उदार दृष्टि का उल्लेख करते हुए बम्बई एवं सूरत में जैन समाज द्वारा प्रेरित एवं संचालित पशु-पक्षी चिकित्सालयों का उल्लेख किया है। 20 श्री आर कस्ट", रोबर्ट नियम कस्ट एडली थियोडोर बेस्टरमैन और अरनेस्ट क्रेव श्री आर. पी. रसेल और श्री हीरालाल, विलियम क्रुक, एडवर्ड कोंजे ", ओ. टी. ,
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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