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________________ अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011 बेटेनी, श्री ए. एल. खान, जे. विलसन इत्यादि सभी विद्वानों ने जैन समाज की दार्शनिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक एवं अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए जैनधर्म की सर्वप्रमुख विशिष्टता पशु-पक्षियों के प्रति अप्रतिम अनुराग एवं करुण भाव की भूरि-भूरि सराहना की है। जैनियों के अहिंसात्मक दृष्किोण, मानवजाति के प्रति उनकी नैष्ठिक सेवा एवं पशु-पक्षियों पर अमानवीय व्यवहार के प्रति उसकी सतत जागरुकता की भी सभी ने सराहना की है। इतिहास के लम्बे सफर में जैन समाज ने प्रायः पैतृक संस्कारों के कारण भोजन के विषय में कभी भी कोई समझौता नहीं किया है। इसीलिए सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री श्री एस. टी. मोसीस ने अपने उत्तरी, दक्षिणी आर्कट एवं दक्षिणी कनारा के सर्वेक्षण के उपरांत यह निष्कर्ष निकाला था कि वहां का जैन समाज मछली, मांस और मांस से बने हुए किसी भी पदार्थ का सेवन नहीं करता है। उपर्युक्त मूल्यांकन क्षेत्र विशेष में ही नहीं, अपितु संपूर्ण भारत में इन्हीं सत्यों की स्थापना कर सकता है। सुप्रसिद्ध इतिहास मनीषी श्री वी. ए. स्मिथ ने जैन धर्मानुयायियों के अहिंसापरक आचारण को विशेष महत्त्व दिया है। अत: करुणा की आधारभूमि पर खड़ा हुआ यह समाज अहिंसा के तात्त्विक विवेचन के कारण शाकाहारी है। आज विश्व में पशु-पक्षियों की हत्या के विरोध एवं शाकाहार के समर्थन में वातावरण बन रहा है। बौद्धधर्म एवं जैनधर्म के आलोक से प्रकाशित होकर माननीय श्री एल. एच. एंडरसन (1894 ई.) ने मूक पशु-पक्षियों की हत्या को रुकवाने के लिए शिकागो में किस प्रकार से पशुओं का कत्ल किया जाता है इसविषय पर भाषण किया था। उन्होंने वहां के समाज के विवेक को झकझोरते हुए पशु-पक्षियों की हत्या न किए जाने की विशेष प्रार्थना की थी। उनके स्वर में अनेक शक्तिशाली स्वरों ने योग देकर करुणा की परंपरा को आगे बढ़ाया है। बीसवीं शताब्दी के युगपुरुष महात्मा गाँधी ने अपने विदेश प्रवास से पूर्व एक जैन सन्त की प्ररेणा से तीन नियम व्रत रूप में अंगीकार किए थे। लोककल्याण के वह मंगल नियम थे- मद्य, मांस और परस्त्री के संसर्ग से बचकर रहना। इन्हीं नियमों के पालन हेतु उन्होंने अनेक प्रकार के प्रयोग किए और पाश्चात्य शाकाहारियों के तर्कों से प्रभावित होकर उन्होंने दूध का भी त्याग कर दिया। दूध का त्याग करते समय उनकी दृष्टि में यह तथ्य भी निहित था कि भारत में जिस हिंसक ढंग से पुश-पालन एवं दूध उत्पादन किया जाता है वह एक संवेदनशील सुहृदय मनुष्य के लिए सर्वथा असह्य था। खेड़ा-सत्याग्रह में दुर्बलता से अत्यधिक प्रभावित हो जाने पर भी चिकित्सकों, परिचितजनों के असंख्य अनुरोधों और राष्ट्र सेवा के संकल्प को साकार रूप देने की भावना से ही उन्होंने बकरी का दूध लेना स्वीकार कर लिया था। इस संदर्भ में यह भी स्मरणीय है कि दूध छोड़ने का नियम लेते समय उनकी दृष्टि में बकरी का दूध त्याज्य श्रेणी में नहीं था। गौवंश की निर्मम हत्या के विरुद्ध उन्होंने शक्तिशाली स्वर उठाये। गाय में मूर्तिमंत करुणामयी कविता के दर्शन करते हुए उन्होंने उसे सारी मूक सृष्टि के प्रतिनिधि के रूप में ही मान्यता दे दी थी। उनकी संवेदना में सजीव प्राणियों के अतिरिक्त धरती की कोख
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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