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________________ अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011 अरिहुं दन्त तृन धरै ताहि मारत न सबल कोई। हम सन्तत तृन चरहिं वचन उच्चरहिं दीन होई। अमृत छीर नित स्रवहिं बच्छ महि थम्भन जावहिं। हिन्दुहिं मधुर न देहिं कटुक तुरूकहिं न पियावहिं। कह कवि 'नरहरि' अकबर सुनो, विनवत गउ जोरे करन। अपराध कौन मोहि मारियत, मुयहु चाम सेवहिं चरन। गौओं की प्रार्थना से द्रवित होकर सम्राट अकबर ने अपने राज्य के बहुसंख्यक नागरिकों की धार्मिक मान्यता को समादर देकर करुणा के दर्शन को मुखरित किया था। श्री रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार धर्म अकबर की राजनीति का साधन नहीं था, प्रत्युत् यह उसकी आत्मा की अनुभूति थी। अबुल फजल और बदायूनी के विवरणों से मालूम होता है कि अकबर सूफियों की तरह कभी-कभी समाधि में आ जाता था और कभी-कभी सहज ज्ञान के द्वारा वह मूल सत्य के आमने-सामने भी पहुंच जाता था। एक बार वह शिकार में गया। उस दिन ऐसा हुआ कि घेरे में बहुत से जानवर एक साथ पड़ गए और वे सब मार डाले गये। अकबर हिंसा के इस दृश्य को सह नहीं सका। उसके अंग-अंग कांपने लगे और तुरन्त उसे एक प्रकार की समाधि हो आई। इस समाधि से उठते ही उसने आज्ञा निकाली कि शिकार करना बंद किया जाए। फिर उसने भिखमंगों को भीख दी, अपना माथा मुंडवाया और धार्मिक भावना के इस जागरण की स्मृति में एक भवन का शिलान्यास किया। जंगल के जीवों ने अपनी वाणीविहीन वाणी में उसे धर्म का रहस्य बतलाया और अकबर की जागरुक आत्मा ने उसे पहचान लिया। यह स्पष्ट ही, उपनिषदों और जैन धर्म की शिक्षा का प्रभाव था। जैन संतों की धर्मदेशना से प्रभावित होकर उसने मांसाहार का त्याग कर दिया और इतिहासज्ञ श्री डब्ल्यु कुकी के अनुसार तो सम्राट अकबर ने जैनधर्म के महापर्व पर्युषण के 12 दिनों में अपने राज्य में पशु-हत्या को भी बन्द करवा दिया था। इसी गौरवशाली परंपरा में उसके उत्तराधिकारी सम्राट् जहांगीर के फरमान दृष्टिगोचर होते हैं। राजधानी के श्री दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर जी कूचा सेठ में मुगल शहंशाह जहांगीर के शाही फरमान 26 फरवरी सन् 1605 ई. की नकल के अनुसार सम्राट ने जैन धर्म के मुकद्दश इबादती माह भादों के बारा मुकद्दश ऐय्याम के दौरान मवेशियों और परिन्दों को जबह करना बन्द किया। फरमान में आदेश किया गया है "हमारी सल्तनत के मुमालिक महरूसा के जुमला हुक्काम, नाजिमान जागीरदारान को वाजेह हो फतूहाते दीनवी के साथ हमारा दिलीमनशा खुदाये बर तर की जुमला मखलूक की खुशनवूदो हासिल करना है। आज ईद के मौका पर मा बदौलत को कुछ जैन (हिन्दुओं) की तरफ से इस्तेदा पेश की गई है कि माह भादों के मौके पर उन के बारा मुकद्दश ऐय्याम में जानवरों को मारना बन्द किया जाये। हम मजहबी उमूर में हर मजहब व मिल्लत के अगराज व मकासद की तकमील में ही एक की हौसला अफजाई करना चाहते हैं, बल्के हर जो रूह को एक जैसा खुश रखना चाहते हैं। इसलिये यह दरखास्त
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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