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अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011
17. रत्नकरण्डश्रावकाचार, श्लोक 79 18. वही, श्लोक 80 19. सर्वार्थसिद्धि 7.21.703 20. श्रावकाचार : दिशा और दृष्टि, पृष्ठ 165 पर उद्धृत। 21. सुभाषित (अज्ञात)
- उपाचार्य- राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान (मानित विश्वविद्यालय) जयपुर परिसर,
जयपुर (राजस्थान)
ज्ञानी-अज्ञानी अज्ञानोपास्तिरज्ञानं, ज्ञानं ज्ञानी समाश्रयः । ददाति यत्तु यस्यास्ति, सुप्रसिद्धमिदं वचः॥
-इष्टोपदेश अज्ञानी की उपासना करने से अज्ञान की प्राप्ति होती है और ज्ञानियों की उपासना से ज्ञान की। जिसके पास जो होता है वह वही तो दे सकता है यह बात तो पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। कपड़े की दुकान पर कपड़ा ही मिलेगा और किराने की दुकान पर किराना, रागी-द्वेषी के पास राग-द्वेष मिलेगा और वीतरागी के पास वीतरागता। अब हमारा विवेक किसकी शरण में जाता है, ये हमें स्वयं विचार करना है।