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________________ अनेकान्त 64/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2011 21. Vincent A. Smith: The early history of India P.154 22. नन्द मौर्ययुगीन भारत, पृष्ठ-339 23. नन्द मौर्ययुगीन भारत, पृष्ठ-127-128 24. स्मिथः ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, पृष्ठ-75-76 25. राइस ल्यूइसः मैसूर एण्ड कुर्ग फ्राम दी इंस्क्रिप्शन्स, लन्दन, 1909 26. याकोबी: कल्पसूत्र, प्रस्तावना पृष्ठ-13 27. याकोबी: परिशिष्ट पर्वन् पृष्ठ-61-62 -बिजनौर (उ. प्र.) जितेन्द्रिय : सच्चा सम्राट जिसने अपने आपको जीत लिया वह जितेन्द्रिय है। अपने आपको जीतने वाला, किसी से पराजित नहीं होता। एक आत्म साधक सन्त, सम्राट से भी बड़ा होता है। संत किसी अपेक्षाओं का दास नहीं होता। वह विजय और पराजय के द्वन्द्व से परे रहता है। चीन में एक महान दार्शनिक संत हो गया- कन्फ्यूशियस। एक बार चीन का राजा वहाँ से गुजरा, जहाँ कन्फ्यूशियस विचार मग्न अपनी कुटिया में बैठा था। राजा को निकलते देखकर भी न तो वह अभिवादन के लिए उठा और न ही कोई स्वागत की औपचारितका की। राजा, कन्फ्यूशियस के पास जाकर बोला! तुम्हें पता है तुमसे मिलने कौन आया है? संत ने कहा कि मैं सिर्फ अपना पता रखता हूँ कि मैं सम्राट हूँ। फकीर के इस उत्तर से चीन के सम्राट को गुस्सा भी आया और उसे आश्चर्य हुआ कि यह कितना निडर व्यक्ति है। राजा के अहंकार को जैसे किसी ने आसमान से धरती पर पटक दिया हो। यह व्यक्ति स्वयं को सम्राट बोल रहा है जबकि इसके पास न सेना है न सेवक, न राजकोष है न कोई हुकुमत। संत कन्फ्यूशियस, सम्राट की यह बात सुनकर हंस दिये। संत ने कहा सेना उसे चाहिए जिसके पास सत्ता हो। सेवक उसे चाहिए जो पराधीन हो, राजकोष की संपत्ति उसे चाहिए जो गरीब और आकांक्षाओं का भूखा हो। मेरे पास तो संतोष का अक्षय भण्डार है। मैं स्वयं का मालिक हूँ मुझे सेवक की क्या आवश्यकता। कन्फ्यूशियस ने थोड़ा अफसोस जाहिर करते हुए पुनः सम्राट से कहा- हाँ! इतना अवश्य है कि मैं अभी संपूर्ण सम्राट नहीं बन पाया हूँ मेरे शरीर पर अभी लंगोटी है जिस दिन यह छूट जायेगी मैं सही में सम्राट बन जाऊँगा। संत की इस अलौकिक वाणी को सुनकर सम्राट निरूत्तर हो गया। वह इस रहस्य को भी जान गया कि जिसने अपने आपको जीत लिया, ऐसा जितेन्द्रिय ही सच्चा सम्राट है। - साभार, "आस्था के आयाम' से कृतिकार-पं. निहालचन्द जैन
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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