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________________ 52 मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त एक ओर स्वस्थान की रक्षा करती है, वहाँ दूसरा और कोई विकल्प भी हमारे सामने नहीं छोड़ती है। श्रवणवेलगोल के जैन शिलालेखों के प्रखर अभ्यासी राइस और नरसिंहाचार भी इसी का समर्थन करते हैं। मैगस्थनीज की साक्षी इसी तरह मान लेती है कि चन्द्रगुप्त श्रमणों की भक्ति और उपदेशों का मानने वाला था, न कि ब्राह्मणों के धर्म सिद्धान्त का। याकोबी का कहना है कि हेमचन्द्राचार्य से लेकर आधुनिक सब विद्वान् भद्रबाहु की समाधि की तिथि वीर निर्वाण संवत् 170 मानते हैं। अपनी गणना के अनुसार ई.पू. 297 के लगभग यह तिथि पड़ती है। महान् आचार्य के स्वर्गवास की यह तिथि चन्द्रगुप्त के राज्यकाल ई.पूर्व 321-297 से बराबर मिल जाती है। ह्निस डेविड्स का कहना है कि यह निश्चित है कि उपलभ्य राजकीय साहित्य में लगभग दश शताब्दियों तक चन्द्रगुप्त बिलकुल उपेक्षित ही रहा था। यह संभव लगता है कि ब्राह्मण लेखकों की चुप्पी या उपेक्षा का यही कारण हो कि मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त जैन था। संदर्भ सूची: 1. मुद्राराक्षस अंक 4 2. महावंश की टीका अनुसार मौर्यों का संबन्ध शाक्यों से जो आदित्य (सूर्य) के वंशज थे अवदान कल्पलता संख्या- 19 परिशिष्ट पर्वन् पृ. 56, 8-229 4. गेगर का अनुवाद पृ. 27 मोरियानं खत्तियानं वंशे जातं। 5. दिव्यावदान पृष्ठ- 409 सेक्रिड बुक्स ऑफ ईस्ट प्र. 134-45 7. प्राचीन भारत का राजनैतिक इतिहास पृ. 198 8. जैकोबी, कल्पसूत्र ऑफ भद्रबाहु 1879 पृ. 7, परिशिष्ट पर्वन् द्वि. सं. 20 9. राइस- मैसूर एण्ड कुर्ग फ्राम इंस्क्रिप्टशंस पृष्ठ-10 10. नंद मौर्ययुगीन भारत पृष्ठ-172-173 11. नंद मौर्ययुगीन भारत पृष्ठ-173 12. द्विजेन्द्रनारायण झा एवं कृष्ण मोहन श्री माली: प्राचीन भारत का इतिहास, पृष्ठ-175-176 13. नंद मौर्ययुगीन भारत, पृष्ठ-182 14. नंद मौर्ययुगीन भारत, पृष्ठ-111-112 15. वही पृष्ठ- 113 16. प्राचीन भारत का इतिहास पृष्ठ-177 17. जैन शिलालेख संग्रह- डॉ. हीरालाल जैन की भूमिका पृष्ठ-61-64 18. जैन शिलालेख संग्रह, पृष्ठ 67 (भूमिका) 19. वही पृष्ठ- 66 (भूमिका) 20. श्रमण- अक्टूबर- दिसम्बर 2000 6.
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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