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________________ अनेकान्त 64/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2011 35 समन्वय या सहिष्णुता- अहिंसा पौरुषेय आचरण है। यह ऐसा अस्त्र है जिसका संचालन सहिष्णु या वीर व्यक्ति ही कर सकता है, क्योंकि कमजोर व भयभीत व्यक्ति की अहिंसा नपुंसक (स्त्रैण) बन जाती है। अहिंसा के अस्त्र को योद्धा-महावीर जैसा सर्वव्यापी, समन्वयशील व्यक्तित्व ही हो सकता है, जो आत्म प्रज्ञा से सम्पन्न होते हैं। अहिंसा की लोकप्रभुता को वही देख व अनुभव कर सकता है। सहअस्तित्व व समता- अहिंसा के ध्वज पर मानव कल्याण का संकल्प मंत्र लिखा होता है, जो सदैव समता और सहअस्तित्व के क्षितिज पर लहराता रहता है। अहिंसा के पुष्प का सुरभित पराग है- समता व सहअस्तित्व। उपर्युक्त तीनों तत्त्वों के साथ अहिंसा हमारे व्यावहारिक जीवन का मुख्य पहलू बनता है। १३. विश्वशान्ति के सन्दर्भ में अहिंसा व विज्ञान बिना अहिंसा के, विज्ञान की ताकत सृजनात्मक नहीं बन सकती। एक जगह आचार्य विनोबा भावे ने अहिंसा के सम्बन्ध में एक महत्त्वपूर्ण सूत्र दिया। विज्ञान+ हिंसा = सर्वनाश। विज्ञान+ अहिंसा = सर्वोदय। आज परस्पर दो राष्ट्रों के बीच राजनैतिक परिदृश्य में क्या घटित हो रहा है? राष्ट्रों के बीच Balance of Power यानि शक्तिसंयोजन की होड़ चल रही है। वस्तुतः आतंकवाद-राजनैतिक धार्मिक उन्माद है जो राजनीति और सत्ता की उपज है। व्यक्ति का स्वभाव क्रूरता में जीने या दूसरे की अकारण जान लेने का नहीं है। सत्ता के आलाकमान धार्मिक उन्माद का जहर इन्जेक्ट करते हैं, जिससे मानवीय सम्बन्धों की ऊष्मा ठण्डी पड़ने लगती है। पड़ोसी देश के धार्मिक उन्माद की पीड़ा भारत झेल रहा है। आत्मघाती 'मानव बम्ब' विज्ञान की राजनैतिक गुलामी है, जो क्रूरता का ताण्डव रचता है। जिसने शांति व सौहार्द का वातावरण समाप्त कर दिया है। विज्ञान को अहिंसा व विवेक की आँख चाहिए। अन्यथा विज्ञान के द्वारा उत्पन्न आण्विक शक्ति सर्वनाश करने को बैठी है। आज विज्ञान का गठबंधन हिंसा के साथ है। आतंकवादी माहौल में करुणा का पैगाम उतना ही जरूरी है जितना जीने के लिए हवा और पानी। करुणा के इस सूखते स्रोत पर गहरी चिन्ता होना आवश्यक है। मनुष्य की मौलिकता को बचाए रखना आज के विज्ञान और वैज्ञानिकों के लिए चुनौती है। वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने संहति ऊर्जा का सूत्र E=MC2 अन्वेषित कर इसके आधार पर बने आण्विक बम्ब और नागासाकी व हिरोशिमा पर आण्विक हथियारों से हुई विनाश लीला ने आइन्स्टीन को एक पछतावा और मानसिक ग्लानि से भर दिया था और उन्होंने प्रायश्चित भरी टिप्पणी दी थी कि हमको ऐसे काम नहीं करना चाहिए जिससे दुनिया का संहार हो, अशान्ति व क्षोभ का पर्यावरण फैले व मानवता अपंग बन जाये। अशान्ति के कहर ढ़ाते हैं Atomic Weapons (मिसाइल) तथा Ballastic Weapons (प्रक्षेपास्त्र) आदि जो सियासत के इशारे पर 2 हजार किमी दूर तक लक्ष्य को भेदकर काम तमाम कर सकते हैं। आदमी को उस स्थान तक जाने की जरूरत अब नहीं है।
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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