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________________ जैनाचार्यों द्वारा प्रतिपादित अहिंसा एवं विश्वशान्ति उन आतंकवादियों को पाकिस्तान में वार रूप में बैठे मास्टर माइंड आतंकवादी नेताओं से बराबर निर्देश प्राप्त होते रहे कि हर अगला कदम तुम्हें कैसे रखना है, कहां छिपना है, कब आग लगाना है, कब ग्रेनेड फेंकना आदि आदि। भारत के मुम्बई महानगर में घुसे आतंकवादी क्रूर अंजाम तब तक देते रहे जब तक कि वे ढेर नहीं हो गये। इस प्रकार मूल जड़ है वैचारिक हिंसा। यदि अहिंसा के सिद्धान्त का विकास किया जाना हो तो पहले व्यक्ति का भाव रूपान्तरण किया जावे। उसके विचारों में यह बात पल्लवित की जानी चाहिए कि समस्या का समाधान हिंसा या प्रतिहिंसा नहीं है बल्कि शान्ति, समझाइस, समता और प्रेम रूप अहिंसक तरीके से सम्भव है। जैसे हम भीतर होते हैं, वैसा ही बाहर निर्मित करने लगते हैं। यदि भीतर हिंसा के भाव मौजूद हैं तो हिंसा का परिमण्डल या वर्तुल हमारे आसपास मौजूद रहेगा और यदि भीतर अहिंसा व करुणा भाव बैठा हो तो वही हमारे आचरण में अभिव्यक्त होता है। ११. आचारांग में अहिंसा के सूत्रदूसरे के अस्तित्व को सुरक्षित रखना अहिंसा है, क्योंकि सव्वे जीवाणि इच्छंति जीविउं न मारिज्जउं। तम्हा पाणिवहं घोरं निग्गंथा वज्जयंति ण॥ अर्थात् सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना नहीं चाहते। अतः प्राणी का वध करना घोर पाप है उसका निषेध किया गया है। आचारांग के सूत्र में कहा गया है कि सव्वे पाणा पिया उया सुहसाया दुह पडिकूला। पिय जीविणो जीविउं कामा सव्वेसि जीवियं पियंनाइ॥१८ सुख सबको अच्छा लगता है और दुःख बुरा। वध सबको अप्रिय है और जीवन प्रिय है। अतः किसी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए। इसलिए आचार्य कार्तिकेय ने कार्तिकेयानुप्रेक्षा में कहा है कि 'जीवाणां रक्खणं धम्मो'। १२. विश्वशान्ति के परिप्रेक्ष्य में अहिंसा और अनेकान्त अहिंसा की चरम मानसिक सिद्धि अनेकान्तवाद है। अनेकान्त दृष्टि के तीन आधार बिन्दु हैं, जो विश्वशान्ति में सहायक, परन्तु सक्रिय साधन हैं। 1. सापेक्षता 2. समन्वय, 3. सहअस्तित्व यदि अहिंसा की व्यापक व वैश्विक धरातल पर समीक्षा की जावे तो मानवीय मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में उपर्युक्त तत्त्व बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। सापेक्षता- अनाग्रह/दुराग्रह और दुरभिसंघ को दूर करके मैत्री भाव को प्रेरित करता है। आग्रही शान्ति का पक्षधर नहीं हो सकता। आग्रही अहंकारी होता है। अनाग्रही दूसरे के प्रति सम्मानजनक व्यवहार करता है। उसकी सोच सकारात्मक होती है। वह संकुचित दृष्टि वाला नहीं होता है। वह सापेक्ष सत्य का ग्राही होता है। वह 'ही-की भाषा में नहीं बल्कि 'भी' की सम्भावनाओं में जीता है। अहिंसक व्यक्ति अनाग्राही होने से वह सदैव शान्ति की वकालत करता है।
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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