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________________ मन (ध्यान में एक आवश्यक) होती है तथा जिसके द्वारा देखे सुने गये पदार्थों का स्मरण होकर हेय उपादेय का ज्ञान होता है, वह मन है। वैशेषिक मत का कहना है मन एक स्वतन्त्र द्रव्य है। वह रूप आदि रूप परिणमन से रहित है और अणु मात्र है। बौद्ध मत का कहना है कि विज्ञान ही मन है और इसके अतिरिक्त कोई पौद्गलिक मन नहीं है। सांख्य मत का कहना है कि प्रधान का विकार ही मन है और इसके अतिरिक्त कोई पौद्गलिक मन नहीं है। शंकराचार्य के अनुसार कर्म से केवल मन की ही शुद्धि होती है। तत्त्व वस्तु प्राप्त नहीं हो सकती। इसका मुख्य उपाय ध्यान है। स्वामी शिवानन्द के अनुसार ध्यान ही मोक्ष प्राप्त करने का एकमात्र राज है। चिन्तन की एकाग्रता को ध्यान कहते हैं। अपने ध्येय में लीन हो जाना स्वयं के चेतन स्वरूप में रम जाना ध्यान है। श्री श्री रविशंकर कहते है कि जब मन विश्राम करता है तब बुद्धि तीक्ष्ण हो जाती है। जब मन आकांक्षा, ज्वर या इच्छा जैसी छोटी-छोटी चीजों से भरा हो, तब बुद्धि क्षीण हो जाती है। और जब बुद्धि तथा ग्रहण क्षमता तीक्ष्ण नहीं होती, तब जीवन को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं मिलती है, नए विचार नहीं आते तथा हमारी सामर्थ्य दिन-प्रतिदिन कम होने लगती है। इस ज्ञान से हम अपने छोटे मन के दायरे से बाहर कदम निकाल सकते हैं और कदम जीवन की कई समस्याओं का समाधान देगा। स्वामी चैतन्य कीर्ति कहते हैं कि जब बात मन, आत्मा के नवीनीकरण की हो, शुद्धता की हो, नए नजरिये की हो, नई आदतों की हो, तो ध्यान की महत्ता काफी अहम हो जाती है। ध्यान आपको निरंतर तरोताजा रखता है नकारात्मक विचार नहीं आने देता। हमेशा नया बनाए रखता है। आपके मन मस्तिष्क में नई ऊर्जा का संचार करता है। यही ऊर्जा जिंदगी को सकारात्मक बनाती है। जीवन में नई चीजों के उद्भव में सहायक बनती है। लिहाजा, अगर जीवन में परिवर्तन चाहिए तो ध्यान कीजिए। ध्यान से संबल आता है, चीजों को ज्यादा बेहतरीन ढंग से समझने की क्रिया का विकास होता है। दरअसल, अतीत का बोझ हमारी जिंदगी को बासी बना देता है। जब तक बासीपन दूर नहीं होगा, जीवन में नवीनता की उम्मीद करना बेमानी होगा। आधुनिक विज्ञान मन के अस्तित्व को नहीं मानता; बल्कि उसके स्थान पर स्मृति, विचार, साहचर्य आदि के साथ मानसिक वृत्तियों को भी स्वीकार करता है। जबकि भारतीय मनोविज्ञान में विशेष अध्ययन का विषय यह रहा है कि मन की शक्ति को कैसे संयमित किया जावे। मन; तत्त्व का मनन करता है और चित्त या बुद्धि उसे ग्रहण करता मन को जीतने का मंत्र है अध्यात्म। अध्यात्म से मन का सौन्दर्य खिलता है। अध्यात्म की शिक्षा, अध्यात्म की चर्चा, मन को उर्ध्वगामी बनाती है जबकि भौतिकता से
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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