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________________ 64 अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 दर्शनावरणीकर्मनाशक सिद्ध आरती, 3. वेदनीयकर्मनाशक सिद्ध आरती, 4. मोहनीयकर्मनाशक सिद्ध आरती, 5. आयुकर्मनाशक सिद्ध आरती, 6, नामकर्मनाशक सिद्ध आरती, 7. गोत्रकर्मनाशक सिद्ध आरती और अन्तरायकर्मनाशक सिद्ध आरती। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि पण्डित दयाचन्द्र जैन साहित्याचार्य ने जो अष्ट-कर्मों का नाश करने वाली उक्त आठ आरतियों का उल्लेख किया है, वे स्वतन्त्र आरतियाँ न होकर पण्डित द्यानतरायकृत सिद्धचक्रपूजा के अन्तर्गत लिखी गई आठ कर्मों की जयमालायें ही हैं क्योंकि मुझे इन आरतियों का स्वतंत्र उल्लेख नहीं मिला है। पद साहित्य : पण्डित द्यानतराय ने अनेक आध्यात्मिक पदों की रचना की है, जो उसके अध्यात्मप्रिय होने का सबल प्रमाण है। उनके इन पदों का संग्रह 'जैन पद संग्रह' (चौथा भाग) के नाम से स्वतंत्र रूप से प्रकाशित हो चुका है। इनमें से अनेक पद अन्यत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं।" इन पदों में पण्डित द्यानतराय ने साधु के गुणों की चर्चा, जिनराज की शरण, अरहन्त नाम स्मरण, प्रभु महिमा, मनुष्य जन्म की दुर्लभता, आत्महित करने की सीख, सकल विकल्पों के अभाव की भावना, सम्यग्दर्शन की महिमा एवं निश्चयनय की साधक सामग्री आदि का गहराई से विवेचन किया है। देह की नश्वरता और आत्मतत्त्व की अमरता का विवेचन करने वाला अग्रांकित पद द्रष्टव्य है अब हम अमर भये न मरेंगे ॥ टेक॥ तन कारन मिथ्यात दियो तज, क्यों करि देह धरेंगे। अब हम अमर भये न मरेंगे ॥२॥ उपजै मरै कालतें प्रानी, ताक् काल हटेंगे। राग-दोष जग बंध करत हैं, इनको नाश करेंगे। अब हम अमर भये न मरेंगे ॥२॥ देह विनाशी मैं अविनाशी, भेदज्ञान पकरेंगे। नासी जासी हम शिरवासी, चोखे हों निखरेंगे। अब हम अमर भये न मरेंगे ॥३॥ मरे अनन्त बार बिन समझै, अब सब दुःख बिसरेंगे। 'द्यानत' निपट निकट दो अक्षर, बिन सुमरै सुमरेंगे। अब हम अमर भये न मरेंगे ॥४॥ अपने इन आध्यात्मिक पदों में पण्डित द्यानतराय ने अपनी चिर-परिचित शैली में हिन्दी की प्राचीन विविध राग-रागनियों का प्रयोग किया है, जिनमें राग सोरठा, गुजराती भाषा गीत, राग विलावल, राग गौरी, राग सारंग, राग काफी धमाल, राग विहागरो, राग-मल्हार, राग गौड़ी, राग ख्याल, राग रामकली, राग आसावरी, सवैया, छप्पय, कुण्डलिया और अशोक छन्द आदि प्रमुख हैं। राग-रागनियों के इन विविध प्रयोगों से ऐसा प्रतीत होता है कि पण्डित द्यानतराय की संगीत के क्षेत्र में अच्छी पकड़ थी और वे अपने इन पदों को
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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