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________________ अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 सार्वजनिक शास्त्र सभाओं आदि में संगीतमय शैली से प्रस्तुत करते रहे होंगे। अन्य साहित्य : डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने पण्डित द्यानतरायकृत अन्य दो ग्रंथों का उल्लेख किया है, जिनके नाम हैं- आगम विलास और भेद विज्ञान अथवा आत्मानुभव | आगम विलास में पण्डित द्यानतराय की छियालीस रचनाओं का संकलन है। इन रचनाओं का संकलन पण्डित द्यानतराय की मृत्यु के पश्चात् पण्डित जगतराय ने किया था । 2 आगम विलास के प्रारंभ में 152 सवैया छन्दों में सैद्धान्तिक विषयों की चर्चा है। अतः सैद्धान्तिक विषयों की प्रधानता के कारण ही इस रचना का नाम 'आगम विलास' रखा गया 13 भेद विज्ञान या आत्मानुभव में जीव द्रव्य और पुद्गलादि द्रव्यों का विवेचन है। इसमें पण्डित द्यानतराय ने लिखा है कि- आत्मतत्त्व रूपी चिन्तामणि के प्राप्त होते ही समस्त इच्छायें पूर्ण हो जाती हैं और आत्मतत्त्व के उपलब्ध होते ही विषयरस नीरस प्रतीत होने लगते हैं।" डॉ. प्रेमसागर जैन ने पण्डित द्यानतरायकृत 108 नामों की गुणमाला' नामक ग्रंथ का भी उल्लेख किया है। 15 पण्डित दौलतरामकृत छहढाला तो प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त अन्य जो दो छहढाला उपलब्ध हैं, उनमें एक छहढाला पण्डित बुधजनकृत है और दूसरा पण्डित द्यानतरायकृत। 16 ये दोनों छहढाला पण्डित दौलतरामकृत छहढाला की अपेक्षा अल्प प्रसिद्ध हैं। पण्डित धानतराय ने सिद्धान्तदेव मुनि नेमिचन्द्र द्वारा रचित प्राकृत द्रव्यसंग्रह का हिन्दी पद्यानुवाद भी किया है। 65 इस प्रकार हम देखते हैं कि अध्यात्मप्रेमी महाकवि पण्डित द्यानतराय ने छोटे-बड़े अनेक ग्रंथों की रचना की है, जिनमें जैन सिद्धान्तों का मार्मिक विवेचन किया गया है। संदर्भ 1. 2. 3. छहढाला, 1/1 अग्रनाम तपसी बसे सौं अगरोहा भया, तिनकी संतान सब अग्रवाल गाए हैं। ठारे सुत भये तिन ठारै गोत नाम दये, तहाँसौं निकसिकैं हिसार माहिं छाए हैं ।। फिर लालपुर आय व्वैंक 'चौकसी' कहाय, गोलगोती वीरदास आगरे मैं आए हैं। ताही के सपूत स्यामदास के द्यानतराय, देस पुर गाम सारे साहमी कहाए हैं । । 5. आगरौ गुननिकौ जहानाबाद रहे कोय, सुधरूप धरमविलास धर्म के कियें सदा विलास, धर्मको विलास यह धरमविलास है ।। 4. दौलत विलास, संपादक- डॉ. वीरसागर जैन, प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, सन् 2000, प्रस्तावना पृष्ठ 8 पण्डित नाथूराम प्रेमी द्वारा संपादित एवं श्री जैन ग्रंथरत्नाकर कार्यालय, बम्बई द्वारा सन् 1914 में प्रकाशित । - धर्मविलास, पूरण पंचासिका, पद्य 26 धरमविलासको प्रकास है।
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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