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________________ अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 उसी क्रम से एकत्रित कर ग्रंथ का रूप दे दिया गया होगा। फलस्वरूप विषयों में क्रमबद्धता का अभाव है। कर्म प्रकृतियों का विवेचन करते हुये बीच में जम्बूद्वीप आदि का वर्णन करना और पुनः कर्म प्रकृतियों का विवेचन करने आदि से उक्त कथन की पुष्टि होती पूजा साहित्य : महाकवि पण्डित द्यानतराय ने लगभग एक दर्जन पूजाओं की रचना की है, जिनमें देव-शास्त्र-गुरु-पूजा और विद्यमान बीस तीर्थकर पूजा- ये दो पूजायें अति प्रसिद्ध हैं। ये दोनों पूजायें आज भी पूजन करने वाले श्रावकों के लिये अनिवार्य हैं। यद्यपि संस्कृत भाषा के अतिरिक्त अब हिन्दी में अन्य अनेक आधुनिक कवियों की पूजायें भी उपलब्ध हैं तथापि सामान्य श्रावक द्यानतरायकृत पूजाओं को ही प्राथमिकता देता है। उपर्युक्त के अतिरिक्त पर्व विशेष में की जाने वाली पूजाओं में पण्डित द्यानतरायकृत सोलहकारण पूजा, पञ्चमेरु पूजा, नन्दीश्वर द्वीप पूजा, दशलक्षण धर्म पूजा, रत्नत्रय पूजा (दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र पूजा), निर्वाणक्षेत्र पूजा, सरस्वती पूजा, विदेहक्षेत्र पूजा और सिद्धचक्र पूजा आदि प्रमुख तथा बहुचर्चित हैं। इन पूजाओं में से अनेक पूजाओं का अर्घ्य तो प्रायः प्रतिदिन चढ़ाया जाता है और अवकाश के दिनों में समय होने पर अथवा अष्टमी-चतुर्दशी के दिनों में अधिक पूजायें भी की जाती हैं, किन्तु अष्टाह्निका पर्व और पर्युषण पर्व में इन पूजाओं को गांव-देहात से लेकर महानगरों और अब विदेशों में भी व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप में नृत्य एवं संगीत के साथ किया जाता है। पण्डित द्यानतरायकृत पूजाओं की अावली और जयमाला में अथवा केवल जयमाला में द्यानत या द्यानतराय का नामोल्लेख अवश्य मिलता है, जिससे यह सहज ज्ञात हो जाता है कि ये पूजायें पण्डित द्यानतराय द्वारा रचित हैं। ये पूजायें अत्यन्त सरल, सरस और भक्ति से ओतप्रोत हैं। इनसे तत् तत् विषयों की सूक्ष्म जानकारी भी मिलती है। आरती साहित्यः पण्डित द्यानतरायकृत अनेक आरतियों का उल्लेख मिलता है। ये आरतियाँ जैन समाज में बहुप्रचलित हैं। 'इह विध मंगल आरती कीजै' तो उनकी ऐसी कालजयी रचना है जो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक को मुँहजबानी याद है। इनके अतिरिक्त 'करौं आरती वर्धमान की' आदि भी प्रसिद्ध हैं। धर्मविलास में 'आरती दशक' शीर्षक से जिन ग्यारह आरतियों का संग्रह किया गया है, उनमें से आठ आरतियों की अंतिम पंक्ति में 'द्यानत' पद का प्रयोग किया गया है, किन्तु नेमिनाथ तीर्थकर की आरती के अन्त में मानसिंघह महाराजा, निश्चय आरती के अन्त में दीपचंद और आत्मा की आरती के अंत में बिहारीदास का नामोल्लेख पण्डित दयाचन्द्र जैन साहित्याचार्य ने पण्डित द्यानतरायकृत बीस आरतियों का उल्लेख किया है, जिनमें पूर्वोक्त के अतिरिक्त पार्श्वनाथ, वासुपूज्य, समुच्चय सिद्ध भगवान् और पञ्चकल्याणक आरतियों के साथ ही अष्ट-कर्मों का नाश करने वाली आठ आरतियों का भी नामोल्लेख है, जिनके नाम इस प्रकार हैं- 1. ज्ञानावरणीकर्मनाशक सिद्ध आरती, 2.
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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