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________________ अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 संग्रहालय के क्रमांक 613 पर प्रदर्शित 125x75 सेमी. माप की तीर्थकर मल्लिनाथ की एक शीशविहीन मूर्ति की सबसे मुख्य विशेषता यह है कि शीशविहीन होने के पश्चात् भी इसकी पद्मासन और बद्धपद्मांजलि युक्त मुद्रा एवं शीश पृष्ठ का आकर्षक प्रभामण्डल तथा छत्र इसके गौरव में अभिवृद्धि करते हैं तथा ये अंकन इस बात के प्रमाण हैं कि यह मूर्ति कितने जीवन्त भावों से निर्मित की गयी होगी। मूर्ति के परिकर के उपासक भी भग्न हैं लेकिन उनके पादपों के नीचे धर्म चक्र एवं कलश का अंकन मूलनायक के चिह्न के रूप में प्रभावोपलब्ध है। संग्रहालय में प्रदर्शित बारां से अवाप्त 11वीं सदी की अंतिम तीर्थकर महावीर स्वामी की 132x79 सेमी. माप की मूर्ति ध्यानमुद्रा में है। प्रभामण्डल युक्त इस मूर्ति का परिकर एवं शीर्ष भाग जोड़ा गया प्रतीत होता है। मूर्ति की कोहनी से नीचे तक हाथ और घुटने से नीचे तक के पैर भग्न हैं। मूर्ति परिकर के शीर्ष भाग पर कायोत्सर्ग मुद्रा में दो जैन मूर्तियों का अंकन है। इनके ठीक नीचे उड़ीयमान मालाधार उत्कीर्ण हैं। मूलनायक के दोनों ओर चंवरधारी आकृतियाँ हैं। नीचे के आसन के समानांतर दोनों ओर दो-दो जिन आकृतियाँ हैं जिनमें दो कायोत्सर्ग एवं दो ध्यानमुद्रा में उत्कीर्ण हैं। पीठिका पर मध्य में कीर्तिमुख और उसके दोनों ओर एक-एक सिंह का उत्कीर्णन है। पीठिका के दोनों छोरों पर द्विहस्त सामान्य लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी की मूर्तियाँ हैं। पूर्वोक्त वर्णित पंक्तियों में चूंकि यह तथ्य रेखांकित किया जा चुका है कि बूंदी जिलान्तर्गत केशोरायपाटन कस्बा जैनधर्म का प्राचीन केन्द्र रहा है। इसी क्रम में यहाँ स्थित मुनिसुव्रतनाथ के जैन मन्दिर का उल्लेख 'प्राकृत निर्वाण काण्ड' और 'अपभ्रंश निर्वाण भक्ति' में रेखांकित मिला है। इस देवालय में इस आशय के साक्ष्य हैं कि नेमिचन्द ने सोमश्रेष्ठि हेतु 'वृहद् द्रव्य संग्रह' ग्रंथ की रचना की थी। 13वीं सदी में एक श्रेष्ठि मदन कीर्ति ने यहाँ शासन 'चतुस्त्रिंशतिका' में इस तीर्थ का उल्लेख किया था। संग्रहालय के क्रमांक 301 पर अटरु से प्राप्त 12वीं सदी का प्रतिनिधित्व करने वाली 30x34 सेमी. माप की एक जैन तीर्थकर मूर्ति देखने में आती है। पद्मासनावस्था में निर्मित यह मूर्ति मूलत: जिनायतन जैनमूर्ति के मध्य की रथिका में है। इसके निकट चंवरधारी सेवकों तथा इसकी पाद पीठिका पर गजों के मध्य धर्म चक्र का अंकन है। इसके चारों ओर 108 आसनस्थ देवपुरुषों का भव्य अंकन है जो इस मूर्ति की विशेषता का परिचायक है। इसकी पाद पीठिका पर संवत् 1165 का एक लेख भी पठन में आता है। बूंदी मुख्यालय के मध्य नाहर का चोहदा नामक मौहल्ले में स्वामी आदिनाथ का जैन दिगम्बर मन्दिर स्थापत्य की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस मन्दिर के सभामण्डप की एक दीवार पर तीर्थकर नेमिनाथ के जन्म, दीक्षा, ज्ञान, मोक्ष इन पंच कल्याणक सहित कई घटनाओं को बड़ी ही भावप्रणता से उकेरा गया है। इस कला में मूलनायक के सोलह स्वप्न, गज, गाय, सिंह, लक्ष्मी, चन्द्रमा, सूर्य, मत्स्य युग्म, इन्द्र एवं रत्नादि का सुन्दर अंकन है। कोटा के आवां नामक प्राचीन ग्राम में तीर्थंकर ऋषभदेव का एक मन्दिर प्रतिहार युगीन
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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