SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 52 अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 श्रावक-श्राविकाएँ तथा चंवरधारी सुंदरियों का अंकन है। मूर्ति की पीठिका पर उत्कीर्ण लघु मूर्तियों में हाथ जोड़े श्रावक, अर्द्धसुखासन में चतुर्भुजी यक्ष-यक्षिणी तथा मध्य की रथिका में हिरण युगल का आकर्षक प्रेमालाप युक्त अंकन है। ज्ञातव्य है कि बारां जिले के सारथल कस्बे की परवन नामक नदी के तट पर स्थित प्राचीन काकूनी अपने अनुपमेय स्थापत्य, कला, वास्तु तथा मूर्तिकला के लिये अत्यन्त प्रसिद्ध रहा है। इस क्षेत्र की जैन मूर्तिकला में भव्यता के साथ-साथ सूक्ष्मता का अनूठा संगम देखने को मिलता है। यह पूरा क्षेत्र पूर्व में परमारों, प्रतिहारों तथा चौहान शासकों के आधीन रहा है। इसी स्थल से जैनधर्म की कुछ अन्य विशिष्ट मूर्तियाँ संग्रहालय में प्रदर्शित हैं जो लगभग 11वीं-12वीं सदी की जैन मूर्तिकला का प्रतिनिधित्व करती हैं। अध्ययन के आधार पर इनका परिचय इस प्रकार संग्रहालय के संख्यांक 592 पर प्रदर्षित 120x61 सेमी. माप की जैन पद्मावती देवी की मूर्ति अत्यन्त प्रभावोत्पादक है। मूलतः इस देवी को तीर्थकर पार्श्वनाथ की यक्षी और यक्ष धारणेन्द्र की अर्धांगिनी माना जाता है। सप्तसर्पछत्र एवं आकर्षक जूड़े युक्त अनूठे केश विन्यास के प्रभाव मण्डल में षट्भुजी देवी पद्मावती अपनी ग्रीवा, कटि प्रदेश तथा भुजाओं के अनेक सुन्दर आभूषण धारण किये हैं। ये आभूषण गलसटी, हार, हंसली व मुक्तमाल के रूप में दिखाई देते हैं। देवी के कानों में कुण्डल और ओगनी (जो कान के ऊपरी लोल में) भुजाओं में बाजुबन्धा टड्डा, कटि में करधनी तथा पावों में पायल का अंकन है। मूर्ति के शीर्ष भाग पर चैत्यवृक्ष का अंकन है जिसके नीचे ध्यान मुद्रा में आसनस्थ तीर्थंकर सम्भवनाथ (जिनके लांछन चिह्न रूप में अश्व हैं) का अंकन है। इनके कुछ नीचे दोनों छोरों पर ध्यानस्थ एवं पद्मासन एवं बद्धपद्मांजलि मुद्रा की पाँच और सप्त सर्पछत्रधारी तीर्थकर पार्श्वनाथ की दो मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। पद्मावती की इस मूर्ति की पीठिका पर दो पंक्तियों का एक भग्न लेख है किन्तु उसका संवत् 1156 मात्र ही पठन में आ पाया है। संग्रहालय के क्रमांक 621 पर प्रदर्शित 125x65 सेमी. माप की रक्त पाषाण पर बनी तीर्थकर विमलनाथ की मूर्ति 12वीं सदी की है। इसमें मूलनायक कार्योत्सर्ग मुद्रा में स्थानकावस्था में है। कमल पत्रों से सुसज्जित परिकर में दोनों ओर की रथिका में आसनस्थ एक-एक पुरुष और नारी की चतुर्भुजी मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। परिकर के सर्वोपरि भाग में कुछ उपासकों को घटाभिषेक करते उत्कीर्ण किया गया है जो अत्यन्त कलात्मक है। पाचों के समीप दोनों ओर तीन-तीन परिचारकों का अंकन है, जिनमें से मध्य की एक नारी का जंघा पर हाथ रखे हुए चित्ताकर्षक अंकन है। मूलनायक की पाद पीठिका के मध्य में मालाधारी गंधर्वो के मध्य सुदर्शन चक्र और उसके नीचे शूकर का अंकन दिखाई देता है जो मूर्तिकला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। इसी क्रम में संख्यांक 535 पर 20x17 सेमी. माप की 12वीं सदी की जैन यक्षिणी का प्रदर्शन भी दृष्टव्य है। इसका शीश भाग इतना अधिक कलात्मक है कि इसमें आम्रलुम्बनी युक्त परिकर के मध्य सूक्ष्म जैन तीर्थकर का अंकन है, जो इसे जैन यक्षिणी प्रमाणित करता है। मूर्ति के केशविन्यास अत्यन्त आकर्षक हैं जबकि कानों में कुण्डलों का प्रभावी अंकन है।
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy