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________________ अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 वास्तुकला का अध्ययन करने के लिये महत्त्वपूर्ण है । यद्यपि यह मन्दिर खण्डरावस्था में है परन्तु पश्चिमोन्मुखी शिखर युक्त इस मन्दिर के गर्भगृह की द्वार शाखाएँ एवं ललाट पट्टिका इसका सर्वाधिक कलात्मक पक्ष है। इस मन्दिर का प्रवेश द्वार चतुरशाखा शैली का है जिसमें पुष्पावलंकरण, गुधित नागवल्लरी सहित प्रेमालाप युक्त स्त्री-पुरुष युग्म और अश्वारोहियों की पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं। इस मन्दिर के ललाट बिम्ब के मध्य में जूटधारी तीर्थंकर ऋषभदेव की मूर्ति का अंकन है। यह मूर्ति पद्मावसनावस्था में है। इसके वामवर्ती व दक्षिणवर्ती भाग में दो-दो पृथक् रथिकाओं में अन्य तीर्थकरों का भी इसी मुद्रा में अंकन है। इनके मध्य वाले भागों में स्थानकावस्था में चार सर्पछत्र से युक्त तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। द्वार शाखा चंवरधारी सेवक तथा मालाधारी गन्धर्व एवं श्रावक-श्राविकाओं के अलंकरणों से सुसज्जित हैं। इस प्रकार कोटा के संग्रहालय में कोटा, बूंदी एवं बारां क्षेत्र की जैनधर्म की मूर्तियाँ अध्ययन की दृष्टि से बहु उपयोगी हैं। 54 झालावाड़ क्षेत्र में अनेक स्थलों से प्राप्त जैन मूर्तियों का अपना निजस्व है जो अभी तक अध्ययन और शोध की दृष्टि से सर्वथा उपेक्षित एवं अप्रकाशित रहा है। झालावाड़ संग्रहालय तथा इस क्षेत्र के जैन मन्दिरों में स्थापित जैन मूर्तियों का परिचय इस प्रकार है: झालावाड़ जिले के गंगधार कस्बे से 10 कि.मी. दूर दक्षिण में जैनधर्म के श्वेताम्बर सम्प्रदाय का एक भव्य मन्दिर है- 'नागेश्वर पार्श्वनाथ' । यह मन्दिर उन्हेल नामक गाँव में होने से इसे 'नागेश्वर उन्हेल' भी कहा जाता है। इस मन्दिर में मूल मूर्ति तीर्थंकर पार्श्वनाथ की है जो कला, कमनीयता के स्तर पर जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। लगभग साढ़े 13 फीट की यह मूर्ति ग्रेनाईट सेण्डस्टोन के हल्के हरे रंग की आभा लिये हुए बनी है जिसे स्थानीय श्वेताम्बर जैन पंथानुयायी नील स्फटिक की बताते हैं। इस प्राचीन मूर्ति का दैहिक सौन्दर्य इतना अधिक तेज लिये है कि यहाँ प्रज्वलित दीपज्योति भी इसमें प्रतिबिम्बित होती है। मूर्ति के शीश पर सप्त सर्पफणों की छत्रावलि है तथा अत्यन्त समानुपातिक स्वरूप में मुखमण्डल, देह पर कटिसूत्र एवं कुरीयुग मापमण्डल उकरा है जो इसे श्वेताम्बरमतीय सिद्ध करता है। जैन परिमाणानुसार मूर्ति के अंगोंपांगों का माप इस प्रकार है- पादासन में धर्मचक्र 8 इंच चौड़ा और 15 इंच लम्बा, पैरों के पंजे 8 इंच लम्बे और 15 इंच चौड़े, कमर से घुटनों तक की लम्बाई 41 इंच, वक्षस्थल 38 इंच चौड़ा तथा 15 इंच ऊँचा, कायोत्सर्ग मुद्रा की दोनों भुजाओं का अन्तर 43 इंच, भुजाओं की चौड़ाई 8 इंच और ऊँचाई 25 इंच, हाथ की चौड़ाई 6 इंच और लम्बाई 35 इंच, मुख 27 इंच चौड़ा और 30 इंच लम्बा है मस्तक पर सर्पफणों की चौड़ाई 42 इंच और लम्बाई 19 इंच है। सेण्डस्टोन की इस मूर्ति को श्वेताम्बर जैन पंथानुयायी उनके जैन मतानुसार 2500 वर्षों से अधिक प्राचीन बताते हुए लिखते हैं कि ऐसी मूर्तियों का निर्माण तीर्थकर पार्श्वनाथ के काल में ही हो गया था जो महावीर स्वामी से पूर्व का था। इस मूर्ति के पैरों के निकट एक एक चामर धारी देवों की 37 इंच ऊँची पाषाण मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। इनके निकट साढ़े 4 फुट ऊँची तीर्थकर शांतिनाथ एवं महावीर स्वामी की कायोत्सर्ग मुद्रा की श्वेत पाषाण मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं प्रतीत होता है ये मूर्तियाँ मूल मूर्ति
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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