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________________ अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 मणि, स्वर्ण, रत्न, चांदी, पीतल, मुक्ताफल (मोती) और पाषाण आदि से प्रतिमा की लक्षणविधिपूर्वक अरहंत सिद्ध आदि की प्रतिमा बनवाना चाहिए। और भी लिखा है निर्माप्य जिनचैत्यतद्गृहमठस्वाध्यायशालादिक। श्रद्धा शक्त्यनुरूपमस्ति मदृतेधर्मानुबन्धाय यत्। हिंसारम्भविवर्तिनां हि गृहिणां तत्तादृगालम्बन प्रागल्भीलसदाभिमानकरसं स्यात्पुण्यचिन्मानसम् ॥२/३५ जो बड़े भारी धर्मसाधन का हेतु है वह जिनबिंब, जिनमंदिर, मठ और स्वाध्यायशाला आदिक अपनी रुचि और आर्थिक शक्ति के अनुसार बनवाना चाहिए, क्योंकि हिंसायुक्त आरंभ में फंसे रहने वाले गृहस्थों का जिनप्रतिमादिक तथा जिनप्रतिमा के समान तीर्थ यात्रादिक सम्यग्दर्शन की विशुद्धि के कारणों की प्रौढ़ता के द्वारा शोभायमान है स्वाभिमान से परिपूर्ण हर्ष जिसमें ऐसा मन पुण्य को बढ़ाने वाला होता है। इसके भाव को स्पष्ट करते हुए लिखा है- जिनप्रतिमा, जिनमंदिर आदि धर्म के आयतन हैं। इनके निमित्त से नवीन धर्म की प्राप्ति, प्राप्त धर्म की रक्षा और रक्षित धर्म की वृद्धि होती है, तथा उसी से धर्म परंपरा चलती है। आरंभ में आसक्त गृहस्थों के मन में इन आयतनों के निर्माण के अवलम्बन से अपने जीवन में एक प्रकार का सत्कृत्य सम्बन्धी गौरव का अनुभव प्राप्त कराने वाला स्वाभिमान रस से युक्त परिणाम होता है और उस परिणाम से पुण्यबंध होता है इसलिए श्रावक को भक्ति और शक्ति के अनुसार जिनमंदिर बनवाना चाहिए। उमास्वामि श्रावकाचार में चैत्यालय बनाने की विधि के सम्बन्ध में लिखा है- घर में प्रवेश करते हुए शल्य-रहित वाम भाग में डेढ़ हाथ ऊँची भूमि पर देवता का स्थान बनावें। यदि गृहस्थ नीची भूमि पर स्थित देवता का स्थान बनायेगा, तो वह अवश्य ही संतान के साथ निचली-निचली अवस्था को प्राप्त होता जायेगा। घर के चैत्यालय में ग्यारह अड्.गुल प्रमाण वाला जिनबिंब सर्व मनोवांछित अर्थ का साधक होता है, अतएव इस प्रमाण से अधिक ऊँचा जिनबिंब नहीं बनाना चाहिए। एक अगुल प्रमाण जिनबिम्ब श्रेष्ठ होता है, दो अगुल प्रमाण का जिनबिम्ब धन-नाशक होता है, तीन अङ्गुल के जिनबिम्ब बनवाने पर धन-धान्य एवं संतान आदि की वृद्धि होती है और आठ अगुल के जिनबिम्ब होने पर धन धान्यादिक की हानि होती है। नौ अङ्गुल के जिनबिंब होने पर पुत्रों की वृद्धि होती है और दश अङ्गुल तक के जिनबिंब को घर में स्थापन करने का शुभाशुभ फल रहा है। अतएव गृहस्थ को घर में ग्यारह अगुल प्रमाण वाला जिनबिंब पूजना चाहिए। इससे अधिक प्रमाण वाला जिनबिंब ऊँचे शिखर वाले जिनमंदिर में स्थापना करके पूजें। घर के चैत्यालय के लिए प्रतिमा काष्ठ, लेप (चित्राम) पाषाण, स्वर्ण और चांदी की बनवायें। ग्यारह अङ्गुल से अधिक प्रमाण वाली प्रतिमा को आठ प्रातिहार्य आदि परिवार से रहित नहीं पूजना चाहिए अर्थात् ग्यारह अगुल से बड़ी प्रतिमा को आठ प्रातिहार्यादि परिवार से संयुक्त ही बनवाना चाहिए तथा आज के समय में काष्ठ, लेप और लोहे की प्रतिमा नहीं बनवाना चाहिए। क्योंकि इनकी बनवाई गई यथोक्त योग्य प्रतिमाओं के निर्माण का कोई
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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